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________________ भरत चरित ४१९ __३. सुकुमार श्रीरानी भी यह सुनकर द्रवित हो उठी। वह चंपक लता की डाल की तरह आहत होकर धरती पर गिर पड़ी। ४. अन्य अंत:पुर भी इसी तरह बेसुध होकर धरती पर गिर पड़ा। रोम-रोम में जैसे बाण लग गया। संज्ञा पाने पर सभी रोने लगीं। ५. परस्पर वचन कहने लगीं- पति के बिना अब हमारे दिन सुखकर नहीं हैं, दुःखकर हैं। वे आंखें भर-भर कर रोने लगीं। ६. वे रोती हुईं हाथ जोड़कर भरतजी से कहती हैं- आपके बिना हम अपना जीवन कैसे व्यतीत करेंगी? आप तटाक से हमसे स्नेह तोड़कर निकल रहे हैं। ७. आप स्नेह को इतना जल्दी मत तोड़ो। पुरानी प्रीति को तोड़कर मत जाओ। हमें इस प्रकार निराश कर क्यों छोड़ रहे हैं। ८. महाराज! हम अबला नारी-जात हैं। हमें छोड़ो मत। आज हम सब बिलख रही हैं। हमारी बात बिल्कुल बिगड़ गई है। ९. सूर्य के अस्त होने पर जैसे सूर्य विकासी कमल के मुख का नूर बिगड़ जाता है उसी तरह पति को देखे बिना पत्नियों का नूर बिगड़ गया है। १०. प्रेमीजनों का वियोग कांटे की तरह चुभता रहता है। प्रतिदिन शोक करते हुए हम उसे विस्मृत कैसे कर सकेंगी। ११. महाराज! हम विलापात कर रही हैं। हमें यों खड़े-खड़े रोती देखकर आप महलों में विराजो जिससे हम आपको देख-देखकर हर्षित हो सकें। १२. आप मन में हमारे प्रति दया करें। हम सारी गाढ़े दुःख में हैं। यह दुःख असह्य है। आप हम अबलाओं के प्रति कृपा करें। १३. ये बयांलीस भौमिक महल हमें डरावने लगेंगे। आपके बिना हमें ये सुहावने कैसे लग सकते हैं? इस दुःख को आप सरल न समझें।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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