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________________ दोहा १. लोगों में यह बात फैल गई। ऋषभदेवजी ने कहा है कि भरतजी आयुष्य पूरा कर अविचल स्थान मोक्ष-स्थान में जाएंगे। २. कुछ समय बाद भरतजी सभा के बीच बैठे थे। कोटवाल एक चोर को पकड़ कर दरबार में आया। ३. लाए हुए चोर को खड़ा देखकर भरत महाराज ने पूछा- इसको बांधकर क्यों लाए हो? इसने क्या अनर्थ कार्य किया है?। ४. कोटवाल ने हाथ जोड़कर कहा- इसने नगर में चोरी की है। यह सुनकर भरतजी ने कहा- इसे यहां से ले जाकर मार डालो। ५. तब चोर दोनों हाथ जोड़कर विनयपूर्वक बोला- आप इस बार मुझे जीवित छोड़ दें। पृथ्वीनाथ! अब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा। ६. भरतजी ने कोटवाल से कहा- इसे आज मत मारना। चोरी छोड़ने से चोर तो अपने आप मर गया। अब इसे किसलिए मारा जाए। ७. चोर को जीवित छोड़ दिया गया। वह अपने घर गया। पर थोड़े दिनों बाद उसने फिर चोरी की और पकड़ा गया। ८. कोटवाल ने फिर चोर को सभा में लाकर खड़ा किया। भरतजी को मालूम किया- महाराज! यह वही चोर है। ९. उस समय इसने कहा था कि अब चोरी नहीं करूंगा। इसने फिर घर को फोड़ कर चोरी की है। तब भरतजी ने कहा- इसका मस्तक काट डालो।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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