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________________ भरत चरित २७ ५. वह प्रसन्नतापूर्वक चक्ररत्न के पास आया। तीन प्रदक्षिणा देकर, प्रांजली मस्तक पर रखकर चक्ररत्न को नमस्कार किया। ६. चक्ररत्न को नमस्कार कर हर्षोत्फुल्ल होकर वह शस्त्रागार से बाहर आया और भरतजी की बाहरी उपस्थान शाला में पहुंचा जहां भरत बैठे हैं। ७. उपस्थान शाला में जहां भरतजी बैठे हैं, वहां आकर उसने बद्धांजली को मस्तक पर रखकर जय-विजय कर भरतजी को बधाई दी। ८. भरतजी को सम्यग् रूप से बधाई देकर वह मधुर वाणी में बोला- शस्त्रागार में आज एक अमूल्य वस्तु के रूप में चक्ररत्न प्रकट हुआ है। ९. उसने विस्तारपूर्वक जैसा देखा वैसा बतलाया कि वह चक्ररत्न कैसा दीप्तिमान् दिखाई देता है। हे पृथ्वीपति! वह आपके लिए अत्यंत हितकारी होगा। इसमें तिलमात्र भी मिथ्या नहीं है। १०. यह बात सुनकर भरतजी अत्यंत हर्षित हुए। उन्हें उत्कृष्ट आनंद की प्राप्ति हुई। उनका मुख और आंखें कमल की तरह विकसित हो गईं। उनका तन और मन परमानंदित हुए। ११. पूर्व तप के फल के रूप में भरत नरेंद्र की आयुधशाला में यह चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। भरत संयम लेकर तपस्या कर कर्मों का क्षय कर इसी जन्म में मुक्ति को प्राप्त करेंगे।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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