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________________ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ५. ते हरष सू आयो हो चकररत्न , तिहां, प्रदिखणा दीधी तीनवार। दोनूं हाथ जोडी हो मस्तक चढायनें, चक्ररत्न ने कीयो नमसकार।। चक्ररत्न में हो नमण करे हरष सूं, आयो आवधसाला बार। उवठाण साला हो भरत रे , बारली, तिहां बेठा भरत तिणवार।। ७. ते आय ऊभा छे हो भरत जी बेठा तिहां, हाथ जोडी मस्तक चढ़ाय। विनय करेनें हो भरतेसर राय नें, जय विजय करनें वधाय।। ८. भरत नरिंद में हो रूडी रीत वधायनें, बोल्यों मीठी वाण। आवधसाल में हो एक चीज अमोलक ऊपनी, चक्ररत्न परगटीयो आण।। जेहवों ने दीठो हो चक्र रत्न दीपतो, ते मांड कही सर्व वात। ते अतंत हितकारी हो प्रथवीपति होसी आपनें, इणमें कूड नही तिलमात।। १०. ए वचन सुणेने हो भरतजी अति हरख हुआ, पांम्यों उतकष्टों आणंद। कमल ज्यूं विकस्या हो वदन नयन तेहना, तन मन परमाणंद।। ११. ए चक्ररत्न उपनों हो भरत नरिंद नें, पूर्व तप ना फल जांण। वळे संजम लेनें हो तपसा थी कर्म खपायनें, इण भव जासी निरवाण।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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