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________________ १७८ भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ४. जय जय शबद करें , अनेक, मंगलीक शबद बोलें , विशेख। मंजण घर थी नीकलीयों बार, आयों उवठाणसाला मझार।। ५. पटहस्ती रत्न उभों , तिण ठांम, तिण उपर सेनापती चढीयों तांम। हस्ती उपर बेठों पिण छतर धरावें, विडदावलीयां अनेक बोलावें।। ६. च्यार परकार नी सेन्या सहीत, निरभय थको उपद्रव्य रहीत। वड वडा जोध सुभट ना वृंद, त्यांसूं वीट्यो चालें मन में आणंद।। ७. सीहनाद तणी परें गूंजे ताम, समुद्र शबद तणी परें आंम। एहवा शब्दां रा उठ रह्या धुंकार, सर्व रिध जोत कटक विसतार।। ८. निरघोष शब्द वाजंतर वाजें, आकासें जाणे अंबर गाजें। इण विध सेनापती चलीयों जाय, सिंधू नदी रें कांटे उभा आय।। ९. अनमी भोमीया नमावण काज, इणनें विदा कीयों , भरत माहाराज। इण विण ओर कहो कुण जावें, इण विण अनमीयां नें कूण नमावें।। १०. इण करने सेन्य रहें साहसीक, ओ सगली सेन्या तणों पूजणीक। ओ सगली सेन्या तणों रुखवाल, ओ सगली सेन्या तणों प्रतिपाल। ११. एहवी सेना ने सेनापती सर्व काचा, त्यांने अंतरंग में नही जांणे आछा। त्यांने निश्चेंइ छोड होसी अणगार, इणभव जासी पाधरा मोख मझार।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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