SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० २. एकाग्र चित्त में ध्यान ध्यावतां, तीन दिन पूरा हुवा ताह्यो रे। जब आसण चलीयों , तेहनों, तिण विचार कीयों मन माह्यों रे।। ३. ऊपनों भरतखेतर मझे, चक्रवत छ खंड रो सिरदारो रे। ते इण ठांमें आवीयों, मोंनें याद कीयों इण वारो रे।। ४. तों जीत आचार , म्हारों, तीनोइ काल मझारो रे। भेटणों ले जायनें मूंकणों, सिंधू देवी ज्यूं सारो विस्तारो रे।। ५. एहवी करे विचरणा, पीतीदांन देवानें लीयों साथो रे। रत्नां में मुकट रलीयांमणो, कडलीया पेंहरणने हाथो रे।। ६. बाह्यां ने लीधा , बेंहरखा, इत्यादिक आभरण अनेको रे। ते लेई तिहां थी नीकल्यों, उतकष्टी गति चाल्यों विशेखो रे।। ७. ते आयो भरतजी बेंठा तिहां, उभो आकास मझारो रे। हाथ जोडी मस्तक चाढनें, हाथ जोडी कीयों नमसकारो रे॥ ८. जय विजय करने वधावतों, मुख सूं करे गुणग्रामो रे। अनेक विडदावली बोलता, विनों कीयों सीस नामों रे।। ९. हूं वेताढगिरी कुमार देव डूं, आप छ खंड रा राजांनो रे। हूं किंकर छू आपरों, वळे आप तणों वसवांनो रे।। १०. हूं सेवग थकों रहितूं आपरों, हूं इण दिस रो कोटवालो रे। उपद्रव्य करवा न दूं केहनें, हूं करतूं रुखवालो रे॥ ११. मागध कुमार देव नी परें, रूडी रीत विनों कीयों ताह्यों रे। भेटणों आंण्यों ते देवता, मुक्यो भरतजी रे पायो रे।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy