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________________ दोहा १. सिंधु देवी के चले जाने पर भरतजी ने पौषधशाला से निकलकर स्नानगृह में आकर स्नान किया। २. फिर भोजन-मंडप में आकर तेले का पारणा किया। फिर उपस्थानशाला में आकर सिंहासन पर बैठे। ___३. अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि को बुलाकर भरतजी ने कहा- सिंधु देवी मेरी सेविका हुई उसका महोत्सव करो। ४. आठ दिन का महोत्सव संपन्न कर मेरी आज्ञा मुझे प्रत्यर्पित करो। यह सुनकर सभी लोग हर्षित हुए और महोत्सव किया। ५. आठ दिन का महोत्सव संपन्न होने पर चक्ररत्न पुनः आयुधशाला से निकल कर ऊपर आकाश में आया। ६. ईशान कोण में चलकर वैताढ्य गिरि पर्वत की ओर जाने लगा। चक्ररत्न को उस दिशा में जाते देखकर भरतजी उसके पीछे-पीछे चले। ७. वैताढ्य पर्वत के दक्षिण दिशा के नितंब पार्श्व है, वहां पर भरतजी ने विजय कटक को उतारा। ढाळ : २७ दिनोंदिन भरतजी के पुण्य बढ़ रहे हैं। १. अब भरत नरेंद्र ने उस अवसर पर तेला कर तीन पौषध पचख लिए। वे मन में वैताढ्य गिरि देवता का ध्यान कर रहे हैं।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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