SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 124 कुशलकारणं तिष्ठति । स मातुलोऽपि नायातः । तत्कि चिरयति । (15) एवं तैः अभिहितं कुलीरकोऽपि विहस्य उवाच - मूर्खाः सर्वे जलचरास्तेन " मिथ्यावादिना वञ्चयित्वा, नातिदूरे शिलातले प्रक्षिप्ताः भक्षिताश्च । तत् मया तस्य अभिप्रायं ज्ञात्वा, ग्रीवा इयम् आनीता । ( 16 ) तदलं सम्भ्रमेण । अधुना सर्वजलचराणां क्षेमं भविष्यति । -पञ्चतन्त्रम् । पाठ 25 अब स्त्रीलिंग शब्दों के रूप बनाने का प्रकार लिखते हैं । संस्कृत में कोई अकारान्त शब्द स्त्रीलिंगी नहीं है । आकारान्त शब्द प्रायः स्त्रीलिंग हुआ करते हैं। थोड़े ऐसे शब्द हैं जो आकारान्त होने पर भी पुल्लिंग हैं । परन्तु उनको छोड़ दिया जाय तो बाकी के सब आकारान्त शब्द स्त्रीलिंग हैं । आकारान्त स्त्रीलिंग 'विद्या' शब्द 1. विद्या (हे) विद्ये सम्बोधन विद्याम् विद्यया विद्यायै विद्यायाः 15. चराः+तेन । विद्ये " "" " 2. 3. 4. 5. 6. विद्यानाम् विद्यासु 7. विद्यायाम् इसी प्रकार ‘गङ्गा, रमा, कृपा मज्जा, जिह्वा, भार्या, माला, गुहा, शाला, बाला, विद्याभ्याम् "" "" विद्ययोः विद्याः "" "" 77 विद्याभिः विद्याभ्यः ܕܕ ( शनैः.....आससाद) धीरे-धीरे उस तालाब के पास पहुँचा। ( 14 ) ( कुशलकारणं तिष्ठति) कुशल है न । ( 15 ) (तैः अभिहिते) उनके कहने पर । (मूर्खाः.... आनीता) मूर्ख सब जलनिवासी प्राणी, उस असत्यभाषी ने ठगकर पास के पत्थर पर फेंककर खाये। इसलिए मैं उसका मतलब जान यह गला लाया । ( 16 ) ( तदलं.... भविष्यति ) तो बस है अब घबराना । अब सब जल - निवासियों का कल्याण होगा ।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy