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________________ (4) नर्मदा-ततः को मे लाभः ? तन्न कर्तुमुत्सहे ! पुनर्म मापि प्राभातिकम् अस्त्येव । तत् का करिष्यति ? (5) कमला-सखि नर्मदे ! मैव रुक्मिणी वचः अवज्ञातुम् अर्हसि । अन्योऽन्यसाहाय्यं मनुष्यधर्मः। तत् साहाय्यं कुर्वन्त्याः तव किं हीयते ? तव गृहकृत्यं च अल्पम् । तत् पश्चाद्अपि एकाकिन्या सुकरम् । तत्रापि चेद् अन्यापेक्षा अहं साहाय्यं करिष्यामि। (6) नर्मदा-न श्रामयामि त्वाम्। अहम् एव एकाकिनी तल्लघुलघुसमाप्य विश्रान्तिसुखं कथं न अनुभवेयम्। (7) कमला-सुखं निर्विश्यतां विश्रान्तिसुखम् । तथा कर्तुं का निषेधति। परं एतावदेव पृच्छामि तव गृहकृत्यं त्वम् एकाकिनी लघुतरं करिष्यसे किम् ! . (8) नर्मदा-असंशयं त्वद्वितीया एव। (9) कमला-तर्हि, साहाय्यं किमिति नानुमन्यसे ? (10) नर्मदा-स्वावलम्बम् एव अहं बहु मन्ये, न परसाहाय्यम्, आत्मबलेनैव। सर्वाः क्रिया निवर्तयामि। (11) रुक्मणी-आर्ये नर्मदे ! स्वावलम्बः ममापि बहुमतः । किन्तु आत्मबलातिगे कुर्वन्त्यास्तव किं हीयते) मदद करने से तुम्हारी क्या हानि है ? (एककिन्या सुकर) अकेली से भी किया जा सकता है। (चेयम् अन्यापेक्षा) अगर दूसरे की जरूरत है। (6) (न श्रामयामि त्वाम्) तुमको कष्ट नहीं दूंगी। (तल्लघुलघु समाप्य) वह जल्दी-जल्दी समाप्त करके। (7) (सुखं निर्विश्यतां विश्रान्ति-सुखम्) आराम से लीजिए विश्राम का आनन्द (लघुतरं करिष्यसे) अधिक जल्दी करेगी। (8) (असंशयं त्वद्वितीया एव) निस्संशय अकेली ही। (9) (किमिति नानुमन्यसे) क्यों नहीं मानती। (11) (स्वावलम्बम् एव अहं बहुमन्ये) अपने ऊपर ही निर्भर रहना-मुझे बहुत पसन्द है। (एक पुरुषसाध्याः सकलाः क्रियाः)-एक मनुष्य से सिद्ध होनेवाले सब कार्य। (निर्मातुं न प्रभवेत्)-उत्पन्न करने के लिए समर्थ नहीं होगा। (अतः विपश्चितः-परिशीलयन्ति)-इसलिए विद्वान परस्पर में श्रमों को बांटकर एक-एक बात को ही अपनी-सी करके उसी को तन-मन से विचारते हैं। (तस्मिन्-सुखकरी भवति)-उसी में प्रवीणता संपादन करके लोक-सेवा के लिए प्रवृत्त होते हैं। इस प्रकार श्रम-विभाग से संसार-यात्रा सुखमय होती है। (पर-राष्ट्राणा) दूसरे देशों की। (12) (आफलोदयकर्माणः) फल प्राप्त होने तक काम 5. कर्तुम्+उत्सहे। 6. अस्ति+एव। 7. मा+एवं । 8. एतावद्+एव । 9. तु+अद्वितीया। 10. न+अनु। 11. बलेन एव। 12. मम+अपि। -
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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