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________________ स्त्रीलिंग दृष्टि = नज़र। यात्रा = गमन। चिन्ता = फिक्र। गृहिणी = गृहपत्नी। संसारयात्रा = दुनिया का जीवन-व्यवहार। श्रुति = श्रवण, सुनना। नपुंसकलिंग तल = ऊपरला हिस्सा। मूल = जड़। प्रभात = सवेरा । वस्तुजात = वस्तुओं का समूह। आत्मबल = अपनी शक्ति। निदर्शन = उदाहरण। बीज = बीज। शिरः = सिर । साहाय्य = मदद । लोकाराधन = लोकसेवा । उदर = पेट । नैपुण्य = निपुणता। विशेषण प्राभातिक = सवेरे का। सुगम = आसान । साध्य = सिद्ध करने योग्य । आकुल = कष्टमय। सुजात = अच्छा पैदा हुआ। निवृत्त = हो गया। सुसंस्कृत = उत्तम बनाया हुआ। सम्यक् = ठीक । आत्मबलातिग = अपनी शक्ति से बाहर के। अद्भुत = आश्चर्यकारक। बहुमत = बहुतों का मान्य। इयत् = इतना। विभक्त = बांय हुआ। सुसह = सहने योग्य। प्रीत = संतुष्ट। ___(19) श्रम-विभाग (1) रुक्मिणी-सखि कमले ! श्वः प्रभाते मे बहु करणीयम् तत् कथं निवर्तये इति चिन्ताकुलं मे मनः। (2) कमला-कात्र चिन्ता। अहं तव साहाय्यं करिष्यामि, नर्मदामपि तत्कर्तुमुपदेक्ष्यामि' । इत्यावयोः साहाय्येन सुलभा कार्यसिद्धिः। (3) रुक्मिणी-अपि नर्मदा प्रतिपद्यते तत्कर्तुम्। यावत्ता मेव पृच्छामि-अपि। नर्मदे, प्रभाते मम बहु करणीयम्, कच्चिदल्प'साहाय्यं करिष्यसि। REATENERGARNEAARISeisanrabhaastanisha (1) (मे बहु करणीयम्)-मुझे बहुत कार्य है। (कथं निवर्तये) कैसा किया जाए। (2) (कात्र चिन्ता)-कौन-सी यहां चिन्ता। (इत्यावयोः साहाय्येन सुलभा कार्यसिद्धिः)-इस प्रकार हम दोनों के सहाय्य से कार्य की सिद्धि सुगम होगी। (3) (अपि नर्मदा प्रतिपद्यतो क्या नर्मदा मानेगी। (कंच्चिदल्प) कुछ थोड़ा। (4) (तन्नकर्तुमुत्सहे) वह करने के लिए (मैं) उत्साहित नहीं हूं। (प्रभातिकम्) सवेरे का कार्य। (5) (अवज्ञातुम् अर्हसि) अपमान करने के लिए योग्य हो। (अन्योन्य-सहाय्यम्) परस्पर मदद करनी। (साहाय्यं 1121. कर्तुम्+उपदे.। 2. इति+आवयोः। 3. यावत्+ताम्+एवं। 4. कच्चिद्+अल्पम्।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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