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________________ (6) सार्वभौमः प्राह - भद्रमुखाः, श्रूयतां तत्त्वम् । युष्मासु यस्मिन् अपक्रान्ते सर्वेऽपि यूयं निःसारतां, चानुपयुक्ततां " चोपगच्छेयुः ", स एव प्रधानतमः । 10 ( 7 ) तत् क्रमशः उपक्रम्य निश्चीयतां कः प्रधान इति । तद् आकर्ण्य प्रसन्नान्तराः सर्वेऽपि तथा कर्तु प्रतिश्रुतवन्तः । (8) अर्थतेषु 12 प्रथमं प्रातिष्ठत कोऽपि नियोज्यः प्रकाशानन्दो” नाम । ( 9 ) आ-वत्सरं च देशान्तरे पर्यटूय प्रत्यावृत्तोऽयम् 4 अन्यान् पप्रच्छ - कथं वा भवन्तो मयि गतेऽवर्तन्त इति । ( 10 ) अन्ये प्राहुः - यथा एक-सदनवर्तिषु पुरुषेषु एकस्मिन् मृते अपरे वर्तेरंस्तथा इति । ( 11 ) ततोऽपरः सौरमानन्दो नाम प्रायात् । तस्मिन् प्रतिनिवृत्ते स्पर्शानन्दः, तदुत्तरं 7 रसानन्दः, तदनुसंल्लापानन्दः, ततः परं सचिवः - इति एवं क्रमेण सर्वेऽपि प्रस्थाय, प्रतिनिवृत्य च विनाऽाप आत्मानम् अन्वेषां अविच्छिन्नसुखशालितां प्रत्यक्षीचक्र । ( 12 ) अथ महीपतिः आनन्दवर्मा प्रस्थातुम् उपाक्रमत । प्रतिष्ठमान एष" च अस्मिन् विकल - विकला वह अभवन् अन्ये । (13) निःश्रीकतां च अवापुः ऊचुश्च" साञ्जलिबन्धम् - भवान् एव अस्मासु (6) महाराजाधिराज ने कहा- सज्जनो, तत्त्व सुन लीजिए । तुम्हारे अन्दर से जिसके जाने से तुम सब निःसत्त्व और निकम्मे हो जाओ (गे), वही सबमें श्रेष्ठ है । ( 7 ) इसलिए क्रम से प्रारम्भ करके निश्चय कर लो कि कौन मुख्य है । यह सुनकर प्रसन्नचित्त होकर सबने वैसा करने के लिए प्रतीज्ञा की । (8) अब इनमें से पहले निकल गया एक नौकर प्रकाशानन्द नामवाला । (9) एक वर्ष अन्य देश में घूम-घामकर लौटकर, यह दूसरों से पूछने लगा- किस प्रकार आप मेरे जाने पर रहे ( थे ) ? (10) दूसरे बोले - जिस प्रकार एक मकान में रहनेवाले पुरुषों में से एक के मरने पर दूसरे रहते हैं वैसे । (11) तब (एक) दूसरा सौरभानन्द नामवाला चल पड़ा। उसके लौट आने पर स्पर्शानन्द, उसके बाद रसानन्द, उसके पीछे सल्लापानन्द, पश्चात् प्रधान (मन्त्री); इस प्रकार क्रम से सभी ने चले जाकर और लौट आकर अपने बिना दूसरों के सुख में अभेद-भाव प्रत्यक्ष किया। (12) बाद राजा आनन्दवर्मा चलने लगा। उसके उठते ही शेष गलित-अशक्त हो गए। (13) और शोभारहित हो गए। और बोलने लगे हाथ जोड़कर - आप ही हमारे 10. च+अनुपयु । 11. च + उपग। 12 अथ+एतेषु । 13. प्रकाशानन्दः + नाम। 14 वृत्तः+अयम् । 15. भवन्तः+मयि । 16. वर्तेरन् + तथा । 17. तद् + उक्रारम् । 18. बिना+अपि 119. मानः+एव। 20. ऊचुः+च । 21 प्रयाण+ आयास। 22. चेतनाः+इव । 97
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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