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________________ (14) ततो यावद् असौ तद्वचः प्रतीतो (14) बाद, जब उसके भाषण पर लोभात् सरः स्नातुं प्रविशति, तावत् विश्वास कर लोभ से तालाब में स्नान महापङ्के निमग्नः पलायितुम् अक्षमः। के लिए प्रविष्ट हुआ, तब बड़े कीचड़ में फंसा, और भागने के लिए असमर्थ रहा। (15) पके पतितं दृष्ट्वा व्याघ्रोऽवदत्। (15) कीचड़ में फंसा हुआ (उसे) अहह ! महापङ्के पति तोऽसि अतः त्वाम् देखकर शेर बोला-अरे रे ! बड़े कीचड़ अहम् उत्थापयामि। में फंस गए हो, इसलिए तुमको मैं उठाता (16) इति उक्त्वा शनैः शनैः उपगम्य, तेन व्याघेण धृतः स पान्थः अचिन्तयत्। (17) तन् मया भद्रं न कृतं यद् अत्र मारात्मके विश्वासः कृतः। स्वभावो हि सर्वान् गुणान् अतीत्य मूर्ध्नि वर्तते। (18) अन्यच्च-ललाटे लिखितंप्रोज्झितं कः समर्थः इति चिन्तयन् एव असौ व्याघेणव्यापादितः खादितः च। (16) यह कहकर आहिस्ता-आहिस्ता पास जाकर, उस शेर से पकड़ा गया वह पथिक सोचने लगा (17) सो मैंने अच्छा नहीं किया जो इस हिंसा-रूप में विश्वास किया। स्वभाव ही सब गुणों को अतिक्रमण करके सिर पर होता है। (18) और भी है-माथे पर लिखा हुआ दूर करने के लिए कौन समर्थ है ? ऐसा सोचता हुआ ही उसे शेर ने मार डाला और खा लिया। (19) इसलिए मैं कहता हूं-सब प्रकार से न सोचा हुआ कार्य नहीं करना चाहिए। (हितोपदेश) (19) अतः अहं ब्रवीमि सर्ववाऽविचारितं कर्म न कर्तव्यम् इति। (हितोपदेशात्) समास-विवरण 1. कुशहस्तः-कुशाः हस्ते यस्य सः कुशहस्तः। 2. लोभाकृष्टः-लोभेन आकृष्टः लोभाकृष्टः। 3. आत्मसन्देहः-आत्मनः सन्देहः आत्मसन्देहः। 4. अनेकगोमानुषाणाम्-गावश्च मानुषाश्च गोमानुषाः; अनेके गोमानुषा= ___ अनेकगोमानुषाः तेषाम्। 5. दानधर्मादिकम्-दानं च धर्मश्च दानधर्मों। दानधर्मों आदि यस्य तत् दानधर्मादिकम्। 6. अविचारितम्-न विचारितम्-अविचारितम् । 63
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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