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________________ वस्वन्त पुल्लिंग 'विद्वस्' शब्द द्विवचन विद्वांसौ एकवचन 1. विद्वान् सम्बोधन (हे ) विद्वन् 2. विद्वांसम् 3. विदुषा 4. विदुषे 5. विदुषः (हे) "" विद्वांसौ विद्वद्भ्याम् 11 11 विदुषोः बहुवचन विद्वांसः (हे),, विदुषः विद्वद्भिः विद्वद्भ्यः "" विदुषाम् विद्वत्सु 6. "" 7. विदुषि 17 इसी शब्द के समान ‘तस्थिवस् (खड़ा), सेदिवस् (बैठा हुआ), शुश्रुवस् ( सुनता हुआ), दाश्वस् (दाता), मीढ्वस् (सिंचक), जगन्वस् ( संचारक) इत्यादि वस्वन्त शब्द चलते हैं। जिनके अन्त में प्रत्यय होता है उनको वस्वन्त शब्द कहते हैं 1 संस्कृत में एक शब्द के समान ही कई शब्दों के रूप हुआ करते हैं । जब पाठक एक शब्द को याद करेंगे तब उनमें उसके समान शब्द के रूप बनाने की शक्ति आ जाएगी। इसी प्रकार कई एक पुल्लिंग शब्दों के रूप बनाने में पाठक इस समय तक कुशल हो गए होंगे। अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त, ऋकारान्त, अन्नन्त, इन्नन्त; वस्वन्त, नान्त इतने पुल्लिंग शब्द पाठकों को याद हो चुके हैं और इनके समान शब्दों के रूप बना भी सकते हैं। अब पुल्लिंग शब्दों में मुख्य-मुख्य दो-चार शब्द देने हैं। तत्पश्चात् कुछ सर्वनाम के रूप बताकर नपुंसकल्लिंग शब्दों के रूप दिखलाने हैं। पाठकों से निवेदन है कि वे देरी की परवाह न करते हुए हर एक पाठ को पक्का बनाकर आगे बढ़ें। इस पुस्तक में पढ़ाई का जो क्रम दिया गया है, वह बहुत ही सुगम है जो पाठक प्रत्येक पाठ दस बार पढ़ेंगे उनको सब बातें याद हो जाएंगी, इसमें कोई संदेह नहीं । कुछ व्याकरण के अब नियम देते हैं विसर्ग नियम 1- क, ख, प, फ, के पूर्व जो विसर्ग आता है वह जैसे - का तैसा ही रहता है । जैसे- दुष्टः पुरुषः । कृष्णः कंसः । गतः खगः । मधुरः फलागमः । नियम 2 - पदान्त के विसर्ग का च, छ के पूर्व श् बन जाता है । जैसेपूर्णः+चन्द्रः- पूर्णश्चन्द्रः हरेः + छत्रम् - हरेश्छत्रम् 53
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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