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________________ इन तीन वाक्यों में 'ब्राह्मणाय, पुत्राभ्यां, याचकेभ्यः' ये तीन शब्द चतुर्थी विभक्ति में हैं और वे बता रहे हैं कि तीनों वाक्यों में जो प्रदान हुआ है, वह किनके लिए हुआ है। पञ्चमी विभक्ति वाक्य में पंचमी विभक्ति अर्थात् अपादान ‘से' से घोषित होती है। अपादान का अर्थ है 'छोड़ना', 'अलग होना।' - 1. स नगराद् ग्रामं गच्छति = वह नगर से गांव को जाता है। 2. रामःवसिष्ठवामदेवाभ्यां प्रसादम् इच्छति = राम, वसिष्ठ, वामदेव (इन दोनों) से प्रसाद चाहता है। _____ 3. मधुमक्षिका पुष्पेभ्यः मधु गृहाति = शहद की मक्खी (दो से अधिक) फूलों से शहद लेती है। इन तीनों वाक्यों में 'नगरात्, वसिष्ठवामदेवाभ्यां' पुष्पेभ्यः ये पद पांचवां अन्त है। और यह पांचवां अन्त रूप किससे किसका अपादान (प्राप्त हुआ) है, यह बताते हैं षष्ठी विभक्ति वाक्य में षष्ठी विभक्ति 'सम्बन्ध' अर्थ में आती है। 1. तद् रामस्य पुस्तकम् अस्ति = वह राम की पुस्तक है। 2. रामरावणयोः सुमहान् संग्रामः जातः = राम रावण (इन दोनों) का बड़ा भारी युद्ध हुआ। ___3. नगराणाम् अधिपतिः राजा भवति = शहरों का स्वामी राजा होता है। इन तीनों वाक्यों में छठवें अन्त पदों से पता लगता है कि पुस्तक, संग्राम, अधिपति-इनका किनके साथ मुख्य सम्बन्ध (अर्थात् अधिकार अथवा स्वामीसम्बन्ध) है। सप्तमी विभक्ति वाक्य में सप्तमी विभक्ति ‘अधिकरण (आश्रय) स्थान' अर्थ में आती है। 1. नगरे बहवः पुरुषाः सन्ति = शहर में बहुत पुरुष हैं। 2. तेन कर्णयोः अलंकारौ धृतौ = उसने (दो) कानों में (एक-एक) भूषण (ज़ेवर) धारण किए। 3. पुस्तकेषु चित्राणि सन्ति = पुस्तकों के अन्दर तस्वीरें हैं। इन वाक्यों में तीनों सातवां अन्त पद 'स्थान' (अधिकरण) अर्थ बताते हैं। M
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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