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________________ द्वितीया विभक्ति वाक्य में कर्म द्वितीया विभक्ति में होता है (क्रिया जिस कार्य का किया जाना बताती है वह कर्म होता है।) 1. दशरथः राज्यं करोति = दशरथ राज्य करता है। 2. कृष्णः कर्णो पिधाय तिष्ठति = कृष्ण (दोनों) कान बन्द करके खड़ा है। 3. देवदत्तः ग्रन्थान् पठति = देवदत्त (तीन या तीन से अधिक) ग्रन्थों को पढ़ता इन तीन वाक्यों में 'राज्यं, को, ग्रन्थान्' ये तीनों पद द्वितीय विभक्ति के हैं और वे अपने-अपने वाक्यों की क्रिया के कर्म हैं। क्रिया का करनेवाला (उस) क्रिया का कर्ता होता है और जो कार्य कर्ता द्वारा किया जाता है वह (उस) क्रिया का कर्म होता है। अर्थात्-‘दशरथ राज्यं करोति' इस वाक्य में दशरथ कर्ता, ‘राज्य' कर्म तथा 'करोति' क्रिया है। इसी प्रकार अन्य वाक्यों में जानना चाहिए। तृतीया विभक्ति क्रिया का साधन तृतीया विभक्ति में होता है। संस्कृत में उसे 'करण' बोलते हैं 1. कृष्णवर्मा खड्गेन व्याघ्रम् अहन् = कृष्णवर्मा (ने) तलवार से शेर को मारा। 2. स नेत्राभ्यां सूर्यं पश्यति = वह (दोनों) आंखों से सूर्य को देखता है। 3. अर्जुनः बाणैः युद्धं करोति = अर्जुन (दो से अधिक) बाणों के साथ युद्ध करता है। ___ इन तीन वाक्यों में 'खड्गेन, नेत्राभ्यां, वाणैः' ये तीन शब्द तृतीया विभक्ति के हैं और क्रियाओं के साधन हैं। अर्थात् हनन करने का साधन खड्ग, देखने का साधन नेत्र और युद्ध करने का साधन बाण हैं। चतुर्थी विभक्ति क्रिया जिसके लिए की जाती है, उसकी चतुर्थी विभक्ति होती है। संस्कृत में इसे 'सम्प्रदान' कहते हैं क्योंकि 'के लिए' का सम्बन्ध विशेषकर प्रदान या देने की क्रिया से होता है। 1. राजा ब्राह्मणाय धनं ददाति = राजा ब्राह्मण को धन देता है। 2. पुत्राभ्यां मोदको ददाति = (वह) (दो) पुत्रों को दो लड्डू देता है। 3. कृपणः याचकेभ्यः द्रव्यं न ददाति = कृपण मांगनेवालों को द्रव्य नहीं देता।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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