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________________ नृपः - राजा । प्रसादः - कृपा, मेहरबानी । रक्षकः - पहरेदार । पर्णम् - पत्ता | पत्रम् - पत्ता, पत्र । भूषणम् - ज़ेवर | वत्सः - बछड़ा, बालक । पुरम् - शहर । ऊपर पुल्लिंग तथा नपुंसकलिंग शब्द दिए हैं, जिनके आगे विसर्ग है वे शब्द पुल्लिंग समझने चाहिएं, जैसे- नृपः, वत्सः इत्यादि । जिनके अन्त में 'अनुस्वार' अथवा 'म्' हो वे शब्द नपुंसकलिंग समझने चाहिएं, जैसे- पुरं, पत्रम् इत्यादि । आगे के पाठों में हम इसी प्रकार शब्द देंगे जिससे पाठकों को शब्दों के लिंगों का पता चल जाए । जिन शब्दों के अन्त में 'आ' होता है, वे शब्द प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं । देखिए 1 शब्द । गङ्गा - गंगा नदी । यमुना-यमुना । देवता - देवी देवता कन्या - लड़की | रेखा - लकीर । तारका - तारा । क्षमा-: -शांति, पृथ्वी धर्मपत्नी । । कला - हुनर | प्रिया - प्यारी, वाक्य 1. मनुष्यः ईश्वरस्य प्रसादेन सर्वं सुखं प्राप्नोति- मनुष्य ईश्वर की कृपा से सब सुख प्राप्त करता है। 2. एषः मित्रस्य गृहस्य मार्गः अस्ति-यह दोस्त के घर का मार्ग है । 3. देवदत्तः नृपस्य प्रसादेन अतीव धनं प्राप्नोति - देवदत्त राजा की कृपा से बहुत द्रव्य प्राप्त करता है । 4. तव मित्रस्य निवासः कुत्र अस्ति- तेरे मित्र का निवास कहाँ है ? 5. अद्य - श्वः मम मित्रस्य निवासः अमृतसरनगरे अस्ति- आजकल मेरे मित्र का निवास अमृतसर में है । 6. किं त्वं तं द्रष्टुम् इच्छसि - क्या तू उसे देखना चाहता है ? 7. अथ किम्, अहं तं शीघ्रं द्रष्टुम् इच्छामि - और क्या, मैं उसको जल्दी देखना चाहता हूँ । 8. किमर्थं तं त्वम् एवं द्रष्टुम् इच्छसि - तू उसे इस प्रकार किसलिए देखना चाहता है ? 9. अतीव कालः जातः यदा मया सः दृष्टः, अतः अहं तं द्रष्टुम् इच्छामि - बहुत समय हुआ जब मैंने उसको देखा था, इसलिए मैं उसे देखना चाहता हूँ । 10. तर्हि अद्य मध्याह्ने गच्छ-तो आज दोपहर को जा । 11. यद्यहम् इतः मध्याह्ने चलिष्यामि, तर्हि अमृतसरं कदा गमिष्यामि - अगर मैं यहाँ से दोपहर को चलूँगा तो अमृतसर कब पहुँचूँगा ? 133
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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