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चेतना का रूपान्तरण लोहे को सोना बनाने वाला पारस नकली है। उसे कौन हाथ में लेगा? पार्श्व प्रभु! असली पारस तुम हो जो लोहे को भी पारस बना देते हो।
तुम सिंह के आकार वाले स्फटिक मणि से निर्मित सिंहासन पर बैठकर देशना देते हो, वन्य पशु तुम्हारी वाणी सुनने के लिए आ जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो वे सिंह की उपासना में बैठे हों।
लोह कंचन करै पारस काचो, ते कहो कर कुण लेवै हो। पारस तूं प्रभु साचो पारस, आप समो कर देवै हो। फटिक-सिंहासन सिंह आकारे, वैस देशना देवै हो। वन-मृग आवै वाणी सुणवा, जाणक सिंह नै सेवै हो।।
चौबीसी २३.१,३
१६ मार्च २००६