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रूपान्तरण
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मोक्ष के सुखों से तुम्हारी प्रीति है, फिर भी तुम राग-रहित हो। तुम कर्म का हनन करते हो, फिर भी तुम द्वेष-रहित हो । तुम्हारा चरित्र आश्चर्यकारी है। मैं बद्धांजलि होकर तुम्हें प्रतिदिन प्रणाम करता हूं।
राग-रहित शिव सुख स्यूं प्रीत, कर्म हणै बलि द्वेष रहीत । इचरजकारी थांरो चरित्त हूं प्रणमूं कर
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जोड़ी नित्त ॥ चौबीसी २२.५,६
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१५ मार्च
२००६
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