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जया
अयोग अवस्था ___भंते! योग (शरीर, वचन और मन की प्रवृत्ति) के प्रत्याख्यान से जीव क्या प्राप्त करता है?
योग-प्रत्याख्यान से जीव अयोगत्व (सर्वथा अप्रकम्प भाव) को प्राप्त होता है। अयोगी जीव नये कर्मों का अर्जन नहीं करता और पूर्वार्जित कर्मों को क्षीण कर देता है।
जोग पचक्खाणेणं भंते! जीवे किं जणयइ?
जोगपचक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ। अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं निज्जरेइ।।
उत्तरज्झयणाणि २६.३८
३० जनवरी. २००६