________________
अमनस्क योग (६)
औदासीन्य शून्यता और जागरण- इन दोनों अवस्थाओं से परे की बात है। निद्रा के क्षण में मनुष्य चेतनाशून्य रहता है। जागरण के क्षण में चेतना विषय का ग्रहण करती रहती है।
औदासीन्य और अमनस्कता का क्षण शून्यता और विषय ग्रहण का नहीं है। वह इन दोनों से परे चेतना की आनन्दमयी अवस्थिति है।
GDG
भवति खलु शून्यभावः स्वप्ने विषयग्रहश्च जागरणे । एतद् द्वितयमतीत्यानन्दमयमवस्थितं
२६ जनवरी
२००६
CDC
ब
४७
तत्त्वम् ।।
योगशास्त्र १२.४६