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अमनस्क योग (२) मन अति चंचल, अति सूक्ष्म और तीव्र वेगवाला है। उसकी गति को रोकना बहुत कठिन है। योगी उसे विश्राम देने का प्रयत्न नहीं करता। वह अप्रमाद की स्थिति में रहकर अमनस्कता रूपी शलाका से उसकी चंचलता और गति-वेग को मंद कर देता है।
अतिचञ्चलमतिसूक्ष्म, दुर्लक्ष्यं वेगवत्तया चेतः । अश्रान्तप्रमादाद्, अमनस्कशलाकया भिन्द्यात्।।
योगशास्त्र १२.४१
२५ जनवरी २००६