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प्रेक्षा
प्रेक्षा का शाब्दिक अर्थ है निरीक्षण का प्रकर्ष। इसका तात्पर्यार्थ है-राग-द्वेष और प्रिय-अप्रिय संवेदनों से मुक्त चित्त द्वारा देखना। यह केवल दर्शन और केवल ज्ञान की पद्धति है। केवल जानना और केवल देखना उसके साथ राग-द्वेष और प्रिय-अप्रिय को नहीं जोड़ना।
यह समता की आंख है। इसे तीसरा नेत्र भी कहा जा सकता है। प्रेक्षा के अभ्यास द्वारा इस नेत्र का उद्घाटन होता है।
२७ नवम्बर २००६
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