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कलकल कलर का कलर
का कल
का काम
मनोविजय का रहस्य मन अपनी गति से चलता है। वह कभी प्रिय विषय को ग्रहण करता है कभी अप्रिय को। उसे बलात् रोकने का प्रयत्न मत करो।
उसे बलात् रोकने का प्रयत्न करने पर वह और अधिक विक्षिप्त हो जाता है। न रोकने पर अपने आप शांत हो जाता है। ___ जैसे उन्मत्त हाथी को रोकने पर वह और अधिक उन्मत्त हो जाता हैं, उसे न रोकने पर अपने इष्ट विषयों को प्राप्त कर स्वयं शांत हो जाता है। इसी प्रकार अवारित मन स्वयं शांत हो जाता है।
चेतोऽपि यत्र यत्र, प्रवर्तते नो ततस्ततो वार्यम्। अधिकीभवति हि वारितम्, अवारितं शान्तिमुपयाति॥ मत्तो हस्ती यत्नात् निवार्यमाणोऽधिकी भवति यद्वत्। अनिवारितस्तु कामान्, लब्ध्वा शाम्यति मनस्तद्वत्॥
योगशास्त्र १२.२७,२८
२२ नवम्बर २००६