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योग और मंत्र (३)
जैन साहित्य पूर्व और आगम, इन दो भागों में विभक्त है। पूर्व - साहित्य अपूर्व ज्ञानराशि का भंडार है। दसवें पूर्व का नाम है विद्यानुप्रवाद। उसमें अनेक विद्याओं का समाकलन है। उसमें पांच वर्ण और पांच तत्त्ववाली विद्या का निरूपण है। उससे मानसिक क्लेशों को समाप्त किया जा सकता है।
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मंत्र इस प्रकार है-—
ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः असि आ उ सा नमः ।
पंचवर्णमया पंचतत्त्वा विद्याद्धृता श्रुतात् । अभ्यस्यमाना सततं भवक्लेशं निरस्यति ॥ योगशास्त्र ८.४१
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१६ जनवरी
२००६
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