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भाव
चेतना के विकास का पांचवां स्तर है - भाव | हमारा सूक्ष्म जगत् स्पन्दनों का जगत् है । चेतना और कर्मशरीर के स्पन्दन निरन्तर प्रवाहित होते रहते हैं। वे तैजस शरीर से सम्पर्क कर विद्युत् रश्मियों के रूप में बदल जाते हैं। वे स्थूल शरीर में प्रविष्ट होकर आकार ग्रहण करते हैं, उस अवस्था का नाम है
भाव ।
शरीर, वाणी और मन - इन सबका संचालक भाव होता है और उससे बुद्धि भी प्रभावित होती है।
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१५ अक्टूबर
२००६
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