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बुद्धि
चेतना के विकास का चौथा स्तर है - बुद्धि । वह पौद्गलिक नहीं है। पुद्गल का लक्षण है-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श ।
बुद्धि में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श का अस्तित्व नहीं है।
अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया - एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पण्णत्ता ?
गोयमा ! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पण्णत्ता ।
भगवई १२.१०६
१४ अक्टूबर
२००६
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