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आर्तध्यान (३)
इष्ट संयोग का चिंतन आर्तध्यान का तीसरा प्रकार है । मनोज्ञ शब्द, रूप आदि के संयोग के लिए चिंतन करते रहना तथा प्राप्त हुए मनोज्ञ शब्द, रूप आदि का वियोग न हो, इस प्रकार मन को आकुल बनाए रखना आर्तध्यान है। इससे पदार्थ के प्रति होने वाली आसक्ति प्रगाढ हो जाती है और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
इद्वाणं विसयाईण वेयणाए य रागरत्तस्स । अवियोगऽज्झवसाणं तह संजोगाभिलासो य ।। झाणज्झयणं ८
२३ अगस्त
२००६
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