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का कलकर कलकल फलक
लाख सम्मका कलाक
आर्तध्यान (२) शूल, शिरोरोग आदि वेदना के उत्पन्न होने पर उसके वियोग के विषय में चिंतन करते रहना तथा उपचार के बाद उसका अभाव होने पर पुनः वह वेदना न हो इस प्रकार के अध्यवसाय का निर्माण होना आर्तध्यान का वेदना प्रतिकार नामक दूसरा प्रकार है। __ चिकित्सा के लिए मन आकुल हो जाता है। वह आकुलता मन को व्यथित करती रहती है। फलतः वह मानसिक व्यथा आर्तध्यान बन जाती है।
तह सूलसीसरोगाइवेयणाए वियोगपणिहाणं। तदसंपओगचिंता तप्पडियाराउलमणस्स।।
झाणज्झयणं ७
२२ अगस्त २००६