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स्वसंवित्ति का प्रत्यय आत्मा पूरे शरीर में व्याप्त है। पूरे शरीर का तात्पर्य है पूरे नाड़ी तंत्र में वह व्याप्त है। उसके ज्ञानात्मक प्रदेश सब स्थानों पर समान रूप से व्याप्त नहीं हैं। वे कहीं अधिक हैं कहीं स्वल्प। जहां आत्मा के प्रदेश सघन हैं, शरीर का वह प्रदेश चैतन्य केन्द्र (चेतना का केन्द्र) बन जाता है। कुछ आचार्य इसे मर्मस्थान कहते हैं
बहुभिरात्मप्रदेशैरधिष्ठिता देहावयवाः।
इन चैतन्यकेन्द्रों पर ध्यान करने से अनेक स्वसंवित्ति के प्रत्यय अनुभव में आते हैं।
एषामेकत्र कुत्रापि स्थाने स्थापयतो मनः । उत्पद्यन्ते स्वसंवित्तेः बहवः प्रत्ययाः किल ।।
योगशास्त्र ६.८
१३ अगस्त २००६