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ध्यान का आसन (२)
ध्यान के लिए विविध आसनों का विधान किया जाता है। प्रारंभ काल के लिए वह उचित है, किन्तु अभ्यास की गति होने पर आसन का कोई नियम नहीं है। वही आसन मान्य है, जो ध्यान में बाधा न डाले ।
ध्यान करने वाला खड़े होकर (ऊर्ध्व कायोत्सर्ग की मुद्रा में), बैठकर (वीरासन आदि की मुद्रा में), लेटकर ( दण्डायत आदि की मुद्रा में) ध्यान कर सकता है।
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जच्चिय देहावत्था जिया ण झाणोवरोहिणी होइ । झाइज्जा तदवत्थो ठिओ निसण्णो निवण्णो च ॥ तो देस - काल - चेट्ठानियमो झाणस्स नत्थि समयंमि । जोगाण समाहाणं जह होइ तहा ( प ) यइयव्वं ॥ झाणज्झयणं ३६, ४१
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११ जुलाई
२००६
२१८
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