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प्राणविजय का फल रोग के अनेक कारण हैं। उनमें एक कारण है प्राण का असंतुलन। जिस अवयव में जितनी मात्रा में प्राण का प्रवाह होना चाहिए उससे न्यून अथवा अधिक मात्रा में होता है तो वह रोग का कारण बनता है। आरोग्य का मुख्य हेतु है प्राण का संतुलन।
शरीर के जिस भाग में पीड़ा देने वाला रोग हो, उस भाग में प्राण का संचार करें। फिर उसे वहां रोकें तो पीड़ा का शमन होता है और रोग भी नष्ट होता है।
यत्र यत्र भवेत् स्थाने, जन्तो रोगः प्रपीडकः । तच्छान्त्यै धारयेत् तत्र, प्राणादिमरुतः सदा।।
योगशास्त्र ५.२५
१२ मई २००६