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________________ कारक प्रकरण (कर्मा) और शेष कारक गौण होते हैं। मुख्य सब कारकों में प्रथम विभक्ति होती है और गौण कारकों में क्रमशः कर्म में द्वितीया, कर्ता एवं साधन में तृतीया, दानपात्र में चतुर्थी, अपादान में पंचमी एवं आधार में सप्तमी विभक्ति होती है। कारक में होने वाली विभक्तियों को कारक विभक्ति कहते हैं और कारकों के सिवाय दूसरे शब्द एवं अर्थों को मानकर जो द्वितीया आदि विभक्तियां होती हैं वे 'उपपद विभक्तियां' कहलाती हैं। षष्ठी विभक्ति सम्बन्ध में होती है । सम्बन्ध कारक नहीं है क्योंकि वह क्रिया से सीधा संबंध नहीं रखता। कर्ता क्रिया की सिद्धि में कर्ता का स्थान सबसे प्रधान है । यः क्रियां करोति स कर्ता-- जो क्रिया करता है उसे और जिस शब्द से क्रिया करने वाले का बोध हो उसे कर्ताकारक कहते हैं। कर्ता तीन प्रकार के होते हैं-- (१) स्वतंत्रकर्ता (२) प्रेरककर्ता-प्रयोक्ताकर्ता (३) कर्मकर्ता। (१) स्वतंत्रकर्ता-न परैः प्रेर्यते यः स स्वतंत्र:-दूसरों की प्रेरणा के बिना ही अपनी इच्छानुसार कार्य करने वाला कर्ता 'स्वतंत्रकर्ता' होता है। जैसे-शिष्यः गुरुं प्रणमति-शिष्य गुरु को प्रणाम करता है। (२) प्रेरककर्ता- स्वतंत्र कर्ता को प्रेरित करने वाला कर्ता 'प्रेरक कर्ता' होता है । जैसे—उपाध्यायः शिष्येण गुरुं प्रणामयति-उपाध्याय शिष्य से गुरु को प्रणाम करवाता है। (३) कर्मकर्ता—'कर्म एव कर्ता कर्म कर्ता'-- कर्म ही जहां कर्ता हो जाता है वह कर्मकर्ता है। जैसे—पच्यन्ते शालयः स्वयमेव-चावल अपने आप पकते हैं। इसकी पूर्व अवस्था है- सूदः शालीन् पचति अर्थात् रसोइया चावल पकाता है । कर्ता के व्यापार का जब कर्म में आरोप कर दिया जाता है तब कर्म ही कर्ता बन जाता है। उपर्युक्त वाक्य में सूद कर्ता है और चावल कर्म है । सूद की क्रिया (चावल पकाने की क्रिया) का चावलों में आरोप किया गया है-चावल अपने आप पकते हैं। नियम ६६-(नाम्नः प्रथमा २।४।४४)-नाम से प्रथमा विभक्ति होती है । अश्वः, गुणः, शुक्लः, कारकः, वृक्षः, स्त्री, कुलं, कुमारी, गंगा, कम्बलः, गोः, कृष्णः। नियम ६७– (आमन्त्रणे २।४।४५)-संबोधन में प्रथमा विभक्ति होती है। हे देवदत्त ! प्रयोगवाक्य विद्यते इयं जनश्रुतिः । स आटेंडितं कथं करोति । क्वणनं कस्मै न
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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