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________________ पाठ ७३ : क्वस, कान प्रत्यय शब्दसंग्रह (क्वसु और कान प्रत्यय के रूप) बभूवान् (भू) हुआ था। पपिवान् (पां) पीया था। जग्मिवान् (गम्) गया था। ववन्दानः (वदिङ्) स्तुति की थी। चक्रिवान्, चक्राणः (कृ) किया था। शिश्यानः (शी) सोया था । जक्षिवान्, आदिवान् (अद्) खाया था। ययिवान (यांक) गया था। अधीयिवान् (अधि+इ) पढा था। रुरुदवान् (रुद्) रोया था। विविदवान् (विद्) जाना था। तुष्टुवान्, तुष्टुवान: (ष्टु) स्तवना की थी। बिभीवान् (भी) डरा था। नेशिवान् (णश्) नष्ट हुआ था। प्रप्रच्छवान् (प्रच्छ) पूछा था। पिपिषवान् (पिष्) पीसा था । तेनिवान्, तेनानः (तन्) विस्तार किया था। जजागृवान् (जागृ) जागा था। दुदुहानः (दुह) दुहा था। ननृतवान् (नृत्) नाचा था। शुश्रुवान् (श्रु) सुना था। ममृज्वान् (मुंज) साफ किया था। जज्ञिवान् (ज्ञा) जाना था। जघ्निवान्, जघ्नवान् (हन्) मारा था । बुबुधानः (बुध्) जाना था। मेनानः (मन्) जाना था। ददिवान्, ददानः (दा) दिया था। ररजवान्, ररजानः (रज्) प्रीति की थी। रुरुध्वान्, रुरुधानः (रुध्) रोका था। जगृहवान्, जगृहाणः (ग्रह) ग्रहण किया था । ऊचिवान्, ऊचानः (ब) बोला था। क्त, क्तवतु, क्वसु और कान-ये चार भूतकालिक कृदन्त प्रत्यय हैं । इनमें पहले दो सामान्य भूत में व्यवहृत होते हैं। शेष दो परोक्ष भूत में प्रयुक्त किए जाते हैं । क्त के सिवाय शेष तीन प्रत्यय कर्ता में ही होते हैं । क्त, क्तवतु सब धातुओं से होता है। क्वसु परस्मैपद धातुओं से और कान आत्मने पद धातुओं से होता है। क्वसु और कान भी दो प्रकार से प्रयोग में आते हैं—अर्द्ध क्रिया के रूप में (२) विशेषण के रूप में। १. भारीमलस्वामी दिनद्वयानन्तरमेव पुनः भगवतोः भिक्षोः शरणं समासे दिवान् (समादितवान्) २. मोदमीयिवान्सं भारमलस्वामिनं परिलोक्य पित्रा विस्मितम् (य: मोदं इतवान् तं परिलोक्य) ३. श्री भिक्षो: सेवां अध्यषुषा (सेवामध्युषितेन) भारमलस्वामिना स्वजीवनं उदाहरणस्वरूपमकारि। पहले वाक्य में अर्ध क्रिया के रूप में है और शेष दो वाक्यों में विशेषण के रूप में है। गहरे अक्षरों से चिह्नित शब्द क्वसु प्रत्यय के रूप में
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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