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________________ पाठ ४ : विभक्तिबोध शब्दसंग्रह सर्वः (सब) । विश्व (सब) । उभौ (दोनों) । उभयौ (दोनों)। अन्यः (दूसरा) । अन्यतरः (दोनों से एक)। इतरः (दूसरा)। कतरः (कौनसा-दो में से कोई)। कतमः (कौनसा–तीन या उससे अधिक संख्या में से कोई) । स्यः (वह) । सः (वह) । यः (जो)। असौ (वह)। अयं (यह) । एषः (यह) । एकः (एक) । द्वौ (दो)। त्वं (तू) । अहं (मैं) । भवान् (आप) । कः (कौन)। ये सर्वनाम शब्द हैं। तीनों लिंगों में इनका प्रयोग होता है। यहां पुल्लिग में उनका रूप दिया गया है। - धातु-पां-पाने (पिबति) पीना। प्रां-गन्धोपादाने (जिघ्रति) सूंघना। म्नां--अभ्यासे (मनति) अभ्यास करना। दां-दाने (यच्छति) देना। अव्ययस्वर् (स्वर्ग), अन्तर् (बीचमें), प्रातर् (सुबह), पुनर् (बार-बार)। सर्व और पूर्व शब्द के रूप पुल्लिग में याद करो। इनके रूप जिन शब्द की तरह चलते हैं, कुछ भिन्नता है। (देखें परिशिष्ट १ संख्या २,४४)। पा और घ्रा धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या २,३) । आकारान्त धातुओं के रूप प्रायः पा की तरह चलते हैं। संयोग आकारान्त धातुओं के रूप घ्रा धातु की तरह चलेंगे। विभक्तिबोध जो नाम या क्रियाएं हमारे व्यवहार में आती हैं उन सबके अन्त में विभक्ति लगी हुई होती है। विभक्ति का अर्थ है-विभाजन करने वाला प्रत्यय । जिसके द्वारा संख्या और कारक का बोध होता है उसे विभक्ति कहते हैं। विभक्तियां नाम और क्रियाओं की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को, भिन्न-भिन्न काल को सूचित करती हैं । नाम के अन्त में सात विभक्तियां लगती हैं। सि आदि में होने के कारण उनकी संज्ञा स्यादिविभक्ति है। इनका स्पष्ट विवेचन आगे कारक प्रकरण में मिल सकेगा। यहां केवल उनका स्थूल अर्थ बताना ही उपयुक्त है।
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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