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________________ जिन्नन्त १ १८६. अध्यापकेन । बिन्नन्त गतिअर्थवाली धातु, अकर्मकधातु जिन्नन्त हृ और कृन् धातु, अभिपूर्वक वद् धातु और दृश् धातु ये दोनों भिन्नन्त में आत्मनेपद हो तो प्रधान कर्म में प्रत्यय होता है । मूलवाक्य - चैत्रः मैत्रं ग्रामं गमयति । प्रधान कर्म में – चैत्रेण मैत्री ग्रामं गम्यते । मूलवाक्य - चैत्रः मैत्रं मासं आसयति । ( प्रधान कर्म ) चैत्रेण मैत्रः मासं आस्यते । मूलवाक्य — हारयति भारं भृत्यं भृत्येन वा श्यामः । प्रधानकर्म -हार्यते भारो भृत्यं भृत्येन वा श्यामेन । मूलवाक्य — कारयति कटं चैत्रं चैत्रेण वा सुयशः । प्रधानकर्म — कार्यते कट: चैत्रं चैत्रेण वा सुयशसा । मूलवाक्य — अभिवाद्यते गुरुं शिष्यं शिष्येण वा श्रावकः । प्रधानकर्म – अभिवाद्यते गुरुः शिष्यं शिष्येण वा श्रावकेण । मूलवाक्य --- दर्शयते राजानं भृत्यान् भृत्यै र्वा कपिलः । प्रधानकर्म – दर्श्यते राजा भृत्यान् भृत्यैर्वा कपिलेन । जिन्नन्त से भाव कर्म गण की धातुओं की तरह भिन्नन्त की धातुओं से भी भावकर्म बनाएं जाते हैं । उसका सरल साधन यह है — त्रिन्नन्त की धातु के अंतिम 'इ' को हटाकर उसके स्थान पर 'यते' लगा देना चाहिए। जैसे – जिन्नन्त धातु - कारि है । भावकर्म में रूप बनेगा – कार्यते । हारि-हार्यते । पाठि - पाठ्यते । तापि – ताप्यते । गण की धातुओं से क्त प्रत्यय होता है और भावकर्म के प्रत्यय लगाकर धातु के रूप चलाए जाते हैं वैसे ही भिन्नन्त की धातुओं से भी क्त प्रत्यय होता है और उसके भी भावकर्म के रूप बनाए जाते हैं । जैसे— क - विशालाऽपि सुरैः समेतैः संकीर्णतां नन्दनभूरलम्भि ( प्रापिता) । ख - अणहिलेन वनराजभाजो नगरनिवेशं स्वनाम्ना कारितः इति अणहिलनगरम् । आए हुए देवताओं ने उस विशाल नन्दनभूमि को संकीर्ण बना दिया । इसमें 'अलम्भि' यह जिन्नन्त से भावकर्म का प्रयोग है । संकीर्णता और नन्दन - भूः ये दो कर्म हैं । मुख्यकर्म में प्रथमा एवं गौणकर्म में द्वितीया है । अणहिल ने वनराजा से अपने नाम का नगर बनवाया । कारितः यह कर्म में क्त प्रत्यय है । जिन्नन्तानां निजेच्छ्या के अनुसार जिन्नन्त से कर्म में प्रत्यय मुख्य कर्म से भी किया जा सकता है एवं गौण कर्म से भी ।
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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