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________________ पाठ ५० : तद्धित १३ (स्वार्थिक प्रत्यय) शब्दसंग्रह शोधनम् (अदा करना) । दंडासनं, धर्मासनम् (अदालत) । पुनरावेदनम् (अपील) । न्यासः, निक्षेप: (जमानत)। प्रार्थनापत्रम् (अर्जी)। निर्वाहनपत्रं, प्रतिज्ञापत्रम् (इकरारनामा)। भोगः (कब्जा)। जनपद: (कमिश्नरी) । बलात्ग्रहणम् (कुर्क करना) । बलग्राहः (कुर्की) । बंधनं, प्रग्रहः (कैद)। कारादेशः (कैद का हुक्म) । बन्दी (कैदी)। निरसनं, उपशमनम् (खारिज करना) । आसेधः (गिरफ्तारी)। धातु-रुधन्-आवरणे (रुणद्धि, रुन्धे) रोकना। विचन्पृथग्भावे (विनक्ति, विन्ते) अलग करना । युजन-योगे (युनक्ति,युङ्क्त) जोडना । भिदन्-विदारणे (भिनत्ति, भिन्ते) तोडना। छिदनद्वधीकरणे (छिनत्ति, द्दिन्ते) काटना । भुजंर्-पालनाभ्यवहारयोः (भुनक्ति, भुङ्क्त) पालन करना, खाना । पिष्लुंर्-संचूर्णने (पिनष्टि) पीसना । तनुन्व् -विस्तारे (तनोति, तनुते) विस्तार करना। ___ रुध्, भिद्, पिष् और तन् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ४४ से ४७)। विच से लेकर भुज तक के रूप प्रायः रुध् की तरह चलते हैं (देखें परिशिष्ट २ संख्या ११६, ११४, ११५, ११३) स्वार्थिक प्रत्यय शब्द का जो अर्थ होता है, उसी अर्थ में होने वाले प्रत्ययों को स्वार्थिक प्रत्यय कहते हैं। शब्द के साथ स्वार्थिक प्रत्यय का योग होने पर स्वार्थिकप्रत्ययान्त शब्द का वही अर्थ होता है जो शब्द का था। नियम नियम ४४७-(विनयादिभ्य इकण ७।४।८४) विनय आदि शब्दों से स्वार्थ में इकण् प्रत्यय होता है। विनयः एव वैन यिकम् । समयः एव सामयिकम् । उपचार: एव औपचारिकम् । व्यवहारः एव व्यावहारिकः । संप्रदायः एव साम्प्रदायिकः । नियम ४४६-(प्रज्ञादिभ्य: ७।४।८८) प्रज्ञ आदि शब्दों से अण् प्रत्यय होता है । प्रज्ञः एव प्राज्ञः । मनः एव मानस: । वणिग् एव वाणिजः । आदि। नियम ४५०–(भेषजादिभ्यो यण् ७।४।६४) भेषज आदि शब्दों
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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