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________________ पाठ ४६ : तद्धित (ई) शब्द संग्रह । अलंकारः (आभू शय्या (विस्तर, खाट ) । अवगुण्ठनम् ( घूंघट ) षण) । हारः ( मोती की माला ) । कर्णपूर : ( कनफूल ) । नूपुरम् ( पायजेब ) । प्रसाधनी ( कंघी ) । वेणिका ( वेणी – बालों की चोटी ) । सिन्दूरम् ( सिन्दूर ) । अञ्जनम् (काजल) । गन्धतैलम् ( इत्र ) । तिलकम् (तिलक) । ललाटिका ( टीका) । चूर्णकम् ( पाउडर) । हैमम् ( स्नो ) । शर: ( क्रीम) । दर्पण: (शीशा) । कङ्कणम् (कंकण) । कण्ठाभरणम् (कंठा) । नासाभरणम् ( नथ, बुलाक) । धातु — दिवुच् - क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिषु ( दीव्यति ) रमण करना, जीतना, व्यवहार करना, जुआ खेलना, स्तुति करना, प्रसन्न होना, मद करना, स्वप्न लेना, दीप्त होना । षिवुच् - तन्तुसन्ताने (सीव्यति ) सीना । ष्ठिवु, क्षिवुच् – निरसने (ष्ठीयत, क्षीव्यति ) थूकना । नृतीच्—नर्तने ( नृत्यति) नाचना । व्रीडच् लज्जायाम् (व्रीड्यति) लज्जा करना । क्रुधच् –— कोपे ( क्रुध्यति ) क्रोध करना । कुपच्— क्रोधे (कुप्यति) क्रोध करना लुभच् – गायें ( लुभ्यति ) गृद्ध होना । शुषंच - शोषणे (शुष्यति ) शोषण करना । दुषंच् – वैकृत्ये (दुष्यति) विकृत होना, मलिन होना । षहच् - तृप्तौ ( सुह्यति) तृप्त होना । तुषं, हृषच् - तुष्टो ( तुष्यति, हृष्यति ) प्रसन्न होना । दिव्, नृत्, क्रुध्, हृषच् धातु के रूप याद करो । ( देखें परिशिष्ट २ संख्या ६६,३५,६७,९८ ) । षिवुच् से लेकर क्षिवुच् तक दिव् की तरह चलते हैं। तक के रूप कुप की तरह चलते हैं । हृष् के रूप कुछ भिन्न चलते हैं । नियम एक शब्द से अर्थ की भिन्नता में भिन्न प्रत्यय होते हैं । किन्तु कुछ शब्द ऐसे हैं जिनसे अनेक अर्थों में एक ही प्रत्यय होता है । एक ही रूप अनेक अर्थों में प्रयोग में आता है । नियम ४१६ - ( प्राग्वतोऽग्निकलिरेयण ६।२।२७) अग्नि और कलि शब्द से एयण् प्रत्यय होता है । अग्नेरपत्यं = आग्नेयः । अग्नये हितं आग्नेयम् । इसी प्रकार कालेयः, कालेयम् । नियम ४१७ - ( स्त्रीपुंसाभ्यां नवस्नञौ ६ ।२।२८) स्त्री शब्द से नत्र
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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