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________________ १५८ वाक्यरचना बोध ___ नियम ४१६-(तत्र ७।३।५४) सप्तमी विभक्ति से इव के अर्थ में वत् प्रत्यय होता है, यदि वह सदृशता क्रिया विषय की हो तो । जैसेमथुरायामिव-मथुरावत् पाटलिपुत्रे प्रासादः ।। नियम ४१७- (तस्य ७।३।५५) षष्ठी अंत वाले शब्दों से इव अर्थ में वत् प्रत्यय होता है । चैत्रस्य इव-चैत्रवत् मैत्रस्य गावः । _ख-(स्यादेरिवे ७।३।५३) स्यादि अंतवाले शब्दों से इव अर्थ में वत् प्रत्यय होता है। क्षत्रिया इव क्षत्रियवत् । देवमिव देववत् । साधुना इव साधुवत् । ब्राह्मणाय इव ब्राह्मणवत् । पर्वतात् इव पर्वतवत् । प्रयोग वाक्य जम्बोः वैराग्यस्य द्रढिमानं दृष्ट्वा चौरा अपि विस्मिता बभूवुः । भ्रातुः हृदयस्य द्राघिम्ना स गद्गदोऽभूत् । नेत्रयोः पैत्यं विलोक्य वैद्योऽवदत्त्वं रुग्णोऽसि । सर्वेभ्यः वैदुष्यं रोचते । मौढ्येन मानवः सर्वक्षेत्रेषु विफलो भवति । यौवने यादृशी शक्ति भवति पुंसि तादृशी वर्षिम्नि न । मार्दवेन मर्त्यः जनप्रियो भवति । गुरु: शिष्येभ्य: ज्ञानं ददाति दत्ते वा । तातः पुत्रेभ्यः प्रचुरं धनं अदात् अदत्त वा। विजयः वस्त्राणि दधाति धत्ते वा। शीला भूषणानि धास्यति धास्यते वा । शंकरः स्वपरिकरं बिभर्ति बिभृते वा। बालं क: भरिष्यति, भरिष्यते वा ? संस्कृत में अनुवाद करो मांस और अफीम मत खाओ। शराब और गंजा मत पीओ। तम्बाक और चरस स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है। श्याम के कटिदेश में दर्द है । इस गांव में विधुर व्यक्ति कितने है ? सोहन की बडी शाली कब आयेगी ? मां की सहेली मंदिर कब जायेगी ? राजा ने अपने बाद किसको वारिस बनाया है ? सुरेन्द्र मोहन का साडू है। रमेश के कितने साला, साली हैं ? ससुराल में ज्यादा नहीं रहना चाहिए। तद्धित के प्रत्ययों का प्रयोग करो राम की मृदुता प्रशंसनीय है। रमेश की कृशता सबको असुहावनी लगती है। संकल्प की दृढता से मनुष्य क्या नहीं कर सकता ? अग्नि की उष्णता, जल की शीतलता एक शाश्वत धर्म है। मोहन की मूर्खता से यह काम बिगड़ गया । कवि की कविता रसपूर्ण थी । लक्ष्य की स्थिरता सफलता का प्रथम सोपान है। गुरु की गरिमा को कायम रखना हमारा कर्तव्य है। श्रावक रूपचंदजी का जीवन साधु की तरह था। मनुष्य और मनुष्यता दो मातुएं है। मनुष्य का आकार होने मात्र से मनुष्यता नहीं आती। सुंदरता जहां एक गुण है, वहां दोष भी । दुर्जनता मानव के लिए अभिशाप है।
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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