SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख स्वतः-स्फूर्त राष्ट्र-भावना से ओत-प्रोत कर्मठ तथा पुरुषार्थी थे। यही कारण है कि एक आदर्श सम्राट की भावना के अनुरूप प्रजाजनों का आचरण रहने के कारण प्रशासक पदाधिकारियों की सम्भवतः अधिक आवश्यकता ही नहीं रही होगी। फिर भी, हाथीगुम्फा-शिलालेख के पार्श्ववर्ती गुफा-लेखों में अवश्य ही कुछ पदाधिकारियों के नामोल्लेख मिलते हैं। जैसे- महामद महामात्य (Prime Minister) (जम्बेश्वर गुफा लेख) - अतसुख वादिनक अतिसुख प्रदान करने वाले अर्थात् समाज-कल्याण-पदाधिकारी (छोटा हाथीगुम्फागृह-लेख) (Minister for Social Welfare and Justice) - कुमार वटुक राज-परिवार के बच्चों की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा प्रशिक्षण पर ध्यान रखने वाले पदाधिकारी (Minister for Royal Family Affairs) - कम्महलखिण = कार्यवाहक-पदाधिकारी (सर्व गुहा-लेख) (Executive Officers for Different Departments) यद्यपि उक्त मूल-शब्दावली के अर्थ स्पष्ट नहीं हैं, फिर भी इनके पदों से इनके कर्तव्यों एवं अधिकारों का अनुमान लगाया जा सकता है। दक्षिणापथ में आक्रमण के प्रसंग में खारवेल ने महारट्ठ-संघ अर्थात् असिक, मुसिक, रठिक, भोजक एवं दण्डक जैसे सक्षम राष्ट्रों पर आक्रमण कर उन्हें भी अपने अधिकार में कर लिया था और वहाँ उसने अपनी विचारधारा की अमिट छाप छोड़ी थी । सम्भवतः यह उसी का दीर्घगामी प्रेरक-प्रभाव रहा कि परवर्ती-युगों में महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के कदम्ब, गंग, होयसल, पल्लव, सांतर, चालुक्य एवं राष्ट्रकूट आदि राजवंश या तो परम्परया जैन-धर्मानुयायी रहे अथवा उसके परम हितैषी बनकर उन्होंने उसके साधक आचार्यों एवं शिल्पकारों को सुविधा सम्पन्न आश्रय-स्थल दिये और भक्तिपूर्वक उन्हें लेखन-सुविधाएँ भी प्रदान की। फलतः वहाँ के मनीषियों ने भी कन्नड़, संस्कृत, प्राकृत, एवं अपभ्रंश में उच्चस्तरीय विविध विधाओं एवं विषयों का विभिन्न शैलियों में शास्त्रीय एवं लौकिक विपुल साहित्य का प्रणयन किया। ऐसे महामहिम आचार्यों की श्रृंखला बड़ी ही विस्तृत है। इसकी चर्चा आगे की जायेगी। ३६. इसकी विस्तृत जानकारी के लिये "खारवेलकालीन महारट्ठ-संघ एवं जैन संस्कृति के विकास में उसका योगदान" (महाराष्ट्र जैन इतिहास परिषद द्वारा आयोजित एवं प्रकाशित मेरी भाषणमाला, जनवरी २००२) को देखें।
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy