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________________ २६ जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख से सुकृत, सुविहित, श्रमण, ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, ऋषि तथा उनके संघों के मार्गदर्शक साधकों को विनयपूर्वक कुमारी-पर्वत ३४ पर आमन्त्रित किया। उनकी संख्या ३५००० (पनतिसतसहसेहिं) थी। शिलालेख की पंक्ति सं. १५-१६ के अनुसार उन आमंत्रितों के लिए देश के कुशल कारीगरों द्वारा मणि-रत्न-जटित स्तम्भों वाला एक विशाल कलापूर्ण सभामण्डप बनवाया गया और उसी में चोयट्ठि चऊ + अट्ठि (अर्थात् चार + आठ = द्वादशांग) आगम-वाणी का वाचन किया गया। किन्तु आश्चर्य का विषय यह है कि खारवेलकालीन यह वाचना न तो वर्तमान में उपलब्ध है और प्रस्तुत शिलालेख को छोड़कर उसका कहीं कोई उल्लेख तक नहीं किया गया। खारवेल के शिलालेख में उल्लिखित वास्तु-निर्माण सम्बन्धी कार्यों से विदित होता है कि वह सौन्दर्यबोध का अतिशय धनी था। समय-समय पर अपनी सुविधानुसार राष्ट्रहित एवं समाजहित में ३५ लाख मुद्राएँ व्यय करके उसने कलिंग में सुन्दर-सुन्दर भवन, जलाशय-निर्माण, नहर का जीर्णोद्धार तथा विस्तारीकरण, जर्जर ऐतिहासिक गोपुरों एवं भवनों का जीर्णोद्धार, प्राची नदी के दोनों किनारों पर महाविजय-प्रासाद-निर्माण, राज-मार्गों का निर्माण, कुमारी-पर्वत पर अर्हत् निषिधाओं के निर्माण आदि कराये थे ३५ जो उसके वास्तु-शिल्प-ज्ञान, सांस्कृतिक अभिरुचि, कलिंग की सांस्कृतिक समृद्धि एवं उसके लोकहित-साधक-कार्यों के आदर्श उदाहरण हैं। इन माध्यमों से उसने कुशल कलाकारों, शिल्पियों एवं श्रमिकों के लिये अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार कार्य करने के अवसर भी प्रदान किये थे। खारवेल शिलालेख के अध्ययन से विदित होता है कि विशेषज्ञ-वास्तुविदों के मार्गदर्शन में उक्त वास्तुशिल्पों के अनुभवी कुशल-कारीगरों, प्रशिक्षित-श्रमिकों तथा भवन-निर्माणादि तथा शस्त्र-अस्त्र आदि के निर्माण के लिये आयुधशालाओं की देश में कमी नहीं थी। इसी प्रकार वस्त्रोद्योग-विशेषज्ञों, सफाई-मजदूरी के पेशेवर लोगों, घरेलू उद्योगधन्धों में लगे कर्मियों तथा संस्कृति एवं नैतिक शिक्षाओं का प्रचार करने वाले अनुभवी प्रचारकों की भी कमी नहीं थी। इस प्रकार कलिंग की सुरक्षा, समृद्धि, उत्तरोत्तर-प्रगति एवं नव-निर्माण की दिशा में उन सक्रिय सहयोगी कर्मियों को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। यद्यपि शिलालेख में इनका कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता किन्तु इनके श्रम-सहयोग के बिना खारवेल की क्रियाशीलता तथा कलिंग की समृद्धि एवं प्रगति सम्भव न थी। अतः इन्हें नींव का पत्थर समझ कर कलिंग-संस्कृति का निर्माता सम्राट खारवेल जैसा उदार एवं मानवतावादी प्रशासक निश्चय ही समय-समय पर उन सभी को वात्सल्यभाव पूर्वक प्रबोधित, सम्मानित एवं पुरस्कृत अवश्य करता रहा होगा। खारवेल-शिलालेख में प्रशासन में सहायता करने वाले पदाधिकारियों के नामोल्लेख नहीं मिलते। इससे विदित होता है कि प्रजाजन स्वतः ही आत्मानुशासित एवं कर्तव्यनिष्ठ थे। श्रमण-संस्कृति के प्रभाव से वे अपराध-भावना से प्रायः मुक्त थे और ३४. वर्तमानकालीन उदयगिरि ३५. खा. शि. पं. ३
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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