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________________ दस स्थितिकल्प तथा उत्तम क्षमादि दशधर्म संयुक्त आचार्यों के लिए मेरा नमस्कार हो। उपाध्याय-नमस्कार आयारादिसु अंगेसु, समकालसुदेसु वा। पारंगदाण मुक्खाणं, उवज्झायाण मे णमो॥4॥ अन्वयार्थ-(आयारादिसु अंगेसु) आचारादि अंगों में (वा) अथवा (समकालसुदेसु) समकालीन श्रुत में (पारंगदाण) पारंगत (मुक्खाणं) मुख्य (उवज्झायाण) उपाध्यायों के लिए (मे) मेरा (णमो) नमस्कार हो। अर्थ-आचारादि अंगों में अथवा समकालीन श्रुत में जो पारंगत हैं और संघ में मुख्य हैं, उन उपाध्यायों के लिए मेरा नमस्कार हो। साधु-नमस्कार सम्मदंसण-सण्णाण, चारित्त-तव-साहणा। झाणज्झयण-जुत्ताणं, साहूणं णाणिणं णमो॥5॥ अन्वयार्थ-(सम्मदसण-सण्णाण च चारित्त-तव-साहणा) सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप साधना (झाणज्झयण-जुत्ताणं) ध्यान-अध्ययन से सम्पन्न (साहूणं णाणिणं णमो) ज्ञानी साधुओं को (णमो) नमस्कार हो। __ अर्थ-सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप साधना से संयुक्त, ध्यान-अध्ययन सम्पन्न ज्ञानी साधु-भगवन्तों को नमस्कार हो। 90 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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