SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंच-णमोक्कारो (पंच-नमस्कार, अनुष्टुप छन्द) अरिहंत-नमस्कार णट्ठयादिचदुक्काणं, पत्ताणंत-चदुट्ठयं। पाडिहेरसुजुत्ताणं, अरिहंताण मे णमोm॥ अन्वयार्थ-(णट्ठघादिचदुक्काणं) चार घातिया कर्मों को नाशकर (पत्ताणंतचदुट्ठयं) अनंत चतुष्टयों को प्राप्त करने वाले [तथा] (पाडिहेरसुजुत्ताणं) आठ प्रातिहार्यों से युक्त (अरहंताण) अरहन्तों को (मे) मेरा (णमो) नमस्कार हो। अर्थ-चार घातिया कर्मों को नाशकर अनन्त चतुष्टयों को प्राप्त करने वाले तथा आठ प्रातिहार्यों से युक्त अरहंतों को मेरा नमस्कार हो। सिद्ध-नमस्कार अट्ठकम्म-विधादाणं, पत्ताणंतगुणाण हि। पुरिसायारजुत्ताणं, सुद्धसिद्धाण मे णमो॥2॥ अन्वयार्थ-(अट्ठकम्मविघादाणं) आठ कर्मों को नष्ट कर (पत्ताणंतगुणाण हि) अनंत गुण को प्राप्त [तथा] (पुरिसायारजुत्ताण) पुरुषाकार युक्त (सुद्ध-सिद्धाणं मे णमो) शुद्ध सिद्ध भगवंतों को मेरा नमस्कार हो। अर्थ-आठ कर्मों को नष्टकर अनन्त गुणों को प्राप्त तथा पुरुषाकार युक्त शुद्ध सिद्ध भगवन्तों को मेरा नमस्कार हो। आचार्य-नमस्कार णाणायारादिजुत्ताणं, अणुप्पेहादि-पेहणं। ट्ठिदिकप्पादि-धम्माणं, आयरियाण मेणमो॥॥ अन्वयार्थ-(णाणायारादिजुत्ताणं) ज्ञानाचारादि संयुक्त (अणुप्पेहादि पेहणं) अनुप्रेक्षा आदि का प्रेक्षण करने वाले (ट्ठिदिकप्पादि) स्थिति कल्पादि [तथा] (धम्माणं) धर्म आदि संयुक्त (आयरियाण) आचार्यों के लिए (मे) मेरा (णमो) नमस्कार हो। अर्थ-ज्ञानादि पाँच आचार, अनित्यादि बारह अनुप्रेक्षा, आचेलक्य आदि पंच-णमोक्कारो :: 89
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy