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________________ वन (णिच्च-कल्लोलमालो) नित्य आनंदमाला के धारी (विगदसरणसालो) अशरणों को घर समान (धारिदो सच्छ भालो) स्वच्छभाल के धारी (वड्माणो जिणिंदो) वर्धमान जिनेन्द्र (जगदि) जगत में (जयदु) जयवंत होवें। अर्थ-अनंतवीर्य रूप विशाल बल वाले, मुक्तिरूपी स्त्री में आसक्त, निर्मलगुण के उपवन, नित्यानंद माला के धारी अशरणों को घर समान, स्वच्छभालधारी, वर्धमान जिनेन्द्र जगत में जयवंत होवें। मयणमदविदारी चारुचारित्तधारी, कुगदिभयणिवारी सेट्ठसग्गावदारी। विदिदभुवणसारो केवलण्णाणधारी, जयदुजगदि णिच्चंवड्ढमाणो जिणिंदो॥6॥ अन्वयार्थ-(मयण मद विदारी) मदन का मद विदारण करने वाले (चारुचारित्त धारी) श्रेष्ठतम चारित्र के धारी (कुगदिभय णिवारी) कुगदिभय निवारक (सेट्ठ सग्गावदारी) श्रेष्ठ स्वर्ग से अवतरित (विदिद भुवणसारो) संपूर्ण लोक के ज्ञाता (केवलण्णाणधारी) केवलज्ञान के धारी (वड्ढमाणो जिणिंदो) वर्धमान जिनेन्द्र (जगदि) जगत में (जयदु) जयवंत होवें। अर्थ-मदन का मद विदारण करने वाले, सुंदर चारित्र के धारी, कुगतिभय निवारक,श्रेष्ठ स्वर्ग से अवतरित, संपूर्ण लोक के ज्ञाता, केवलज्ञानधारी, वर्धमान जिनेन्द्रजगत में जयवंत होवें। विसयविसविणासी, सव्वभासाणिवासो, ___ गदभवभयपासो, दित्ति-वल्लीविगासो। सयलसुहणिवासो कंतिसंपूरितासो, ____ जयदुजगदि-णिच्चं वड्ढमाणो जिणिंदो॥7॥ अन्वयार्थ-(विसय-विस-विणासी) विषय-विष विनाशक (सव्वभासा णिवासो) सभी भाषाओं के निवास स्थान (गद भव भय पासो) भव भय पास से रहित (दित्ति-बल्ली विकासो) दीप्तिबेल के विकाशक (सयल सुहणिवासो) सकलसुख के निवास स्थान (संपूरितासा) स्व वर्ण से दिशाओं को भर देने वाले (वड्ढमाणो जिणिंदो) वर्धमान जिनेन्द्र (जगदि) जगत में (जयदु) जयवंत होवें। अर्थ-विषय वासनाओं रूपी विष (जहर) के विनाशक, सभी भाषाओं के निवास स्थान, संसार-भय के बंधन से रहित, दीप्ति को भी दीप्तिमान करने वाले, सकल सुखों के निवास स्थान, परमौदारिक शरीर की कान्ति से दिशाओं को व्याप्त कर देने वाले श्री वर्धमान जिनेन्द्र जगत में जयवंत हों। महावीर-अट्ठगं :: 83
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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