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________________ [तथा] (केवल-गुणं) केवलज्ञान चाहिए [इसलिए] (तं) उन (सहज करुणा पुण्ण- हिदयं) सहज करुणा पूर्ण हृदय (वीरं) वीर भगवान को [हम] (णमामो) नमन करते हैं। ____ अर्थ-हे भगवन् ! विशाल विविध दैविक भोगों में मेरी कोई चाहना नहीं है और न ही मेरा मन पृथ्वी के किसी भी वैभव को चाहता है, मुझे तो आपकी सुखदायी निर्मल दिव्यदृष्टि तथा केवलज्ञान चाहिए; इसीलिए हम आप सहज करुणापूर्ण हृदय वीर भगवान को नमन करते हैं। वड्ढमाणो महावीरो, अदिवीरो य सम्मदी। वीरो त्ति णाम-जुत्तं च, णमोक्करोमि सोक्खदं ॥6॥ अन्वयार्थ-(सोक्खदं) सुख देने वाले (वड्ढ़माणो महावीरो, अदिवीरो सम्मदी वीरोत्ति) वर्धमान, महावीर, अतिवीर, सन्मति और वीर [इन] (णाम-जुत्तं च) पाँच नामों से युक्त वीर भगवान के लिए (णमोक्करोमि) मैं सदा नमस्कार करता अर्थ-सुख देने वाले वर्धमान, महावीर, अतिवीर, सन्मति और वीर इन पाँच नामों से युक्त वीर भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ। 76 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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