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________________ वीर-त्थुदी [वीर-स्तुति, शिखरणी छन्द] अदीदाभूदंवा विविह-पज्जय-वत्थु-सयलं, अलोगागासंवा सदद-सहजं पायड-परं। अपुव्वंसण्णाणंसयल-तमदुभाव-हणणं, णमामोतंवीरंसहज-करुणा-पुण्ण-हिदयं ॥ अन्वयार्थ-[जिनका] (अपुव्वं सण्णाणं) अपूर्व सम्यग्ज्ञान (सयल-तम दुव्भाव- हणणं) सकल दुर्भाव रूपी अंधकार को नष्ट करने वाला है, (अदीदाभूदं वा) भविष्य, भूत व वर्तमान (वत्थु विविह-पज्जय-सयलं,) वस्तु की विविध समस्त पर्यायों को (वा) तथा (अलोगागासं वा) अलोकाकाश व लोकाकाश को (सदद) निरंतर (सहजं) सहज ही (पायड परं) प्रकट करने वाला है (तं) उन (सहज करुणा पुण्ण- हिदयं) सहज करुणा पूर्ण हृदय (वीरं) वीर भगवान को [हम] (णमामो) नमन करते हैं। अर्थ-जिनका अपूर्व केवलज्ञान सम्पूर्ण दुर्मतों के प्रभावरूप अंधकार को नष्ट करने वाला है, भविष्य, भूत व वर्तमान काल संबन्धी विविध वस्तुओं की समस्त पर्यायों को तथा लोक-अलोक को निरंतर सहज ही प्रकट करने वाला है, उन सहज करुणा से पूर्ण हृदय वीर भगवान को हम नमन करते हैं। विचित्तंचारित्तंसयल-भुवणे मोलि-रयणं, सदासच्चाहिंसा-सुहद-पह-कहणेयकुसलं। सरूवे तल्लीणंवयण-समभावाणुकलिदं, णमामोतंवीरंसहज-करुणा-पुण्ण-हिदयं। ॥ अन्वयार्थ-[जो] (विचित्तं चारित्तं) विचित्र चारित्र वाले, (सयल-भुवणे मोलि-रयणं) सकल जगत के मौलि-मणि (सदा सच्चाहिंसा सुहद-पह कहणे य कुसलं) सदा सत्य अहिंसा के सुखद पथ के कथन में कुशल (सरूवे तल्लीणं) स्वरूप में तल्लीन, (वयण समभावाणुकलिदं) समभावों से अनुकलित मुखमुद्रा वाले हैं, (तं) उन (सहज करुणा पुण्ण- हिदयं) सहज करुणा पूर्ण हृदय (वीरं) वीर भगवान को [हम] (णमामो) नमन करते हैं। ___ अर्थ-अद्भुत चरित्र वाले, सकल विश्व के मुकुट-मणि, निरन्तर सत्य अहिंसा के सुखकारी मार्ग के कथन में कुशल, आत्मस्वरूप में तल्लीन, साम्यभावों से पूरित मुखमुद्रा युक्त, उन सहज करुणा से पूर्ण हृदय वाले श्री वीर भगवान को हम नमन करते हैं। 74 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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