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________________ मुणिदसयलतच्चंलोगा-लोगस्ससव्वं, भवियण-कमलाणं पोम्ममित्तस्स तुल्लं। अगणिदगुणजुत्तं सबसुक्खस्स धामं, खविद-कमढमाणं पासणाहणमामि ।।3।। अन्वयार्थ-जिन्होंने (लोगालोगस्स सव्वं) सर्व लोकालोक के (मुणिद सयलतच्चं) सकल तत्त्व जान लिए हैं (भवियणकमलाणं) भव्यजनरूपी कमलों के लिए (पोम्ममित्तस्स तुल्लं) सूर्य समान (अगणिदगुणजुत्तं) अगणित गुणों से युक्त (सव्व-सुक्खस्स धाम) सभी सुख के धाम (खविद कमढमाणं) नष्ट किया है कमठ का मान जिन्होंने (पासणाहं णमामि) [उन] पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ। अर्थ-जिन्होंने समस्त लोक-अलोक के समस्त तत्त्वों को जान लिया है, जो भव्यजनरूपी कमलों के लिए सूर्य के समान हैं, जो अगणित गुणों से युक्त व सर्वसुखों के धाम हैं, संसारी जीवों के भय तथा दुखों को हरने वाले हैं, उन पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ। विजिद-मरण-जम्म-रोग-दुक्खादि-दोसं, जिद-णिहिल-कुबोधंपुज्ज-पूजा वरेण्णं। जिद-बहु-उवसग्गं इंद-णाइंद-वंदं, खविद-कमढमाणं पासणाहं णमामि॥4॥ ___ अन्वयार्थ- [जिन्होंने] (मरण जम्मं जरादि) जन्म जरा मरण आदि (सयल दोसं विजिद) सकल दोषों को जीत लिया है (जिदणिहिलकुबोधं) निखिल कुबोध को जीत लिया है (पुज्जपूजा वरेण्णं) पूज्यों से भी पूजा के योग्य (जिद बहु उवसग्गं) बहु उपसर्ग जित (इंद णाइंद वंदं) इन्द्र-नागेन्द्र वंद्य (खविद कमढमाणं) नष्ट किया है कमठ का मान जिन्होंने (पासणाहं णमामि) [उन] पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ। अर्थ-जिन्होंने जन्म जरा मृत्यु आदि सम्पूर्ण दोषों को जीत लिया है, सम्पूर्ण कुबोध को जीत लिया है, जो पूज्यों से भी पूजा के योग्य, बहुत उपसर्ग को जीतने वाले तथा इन्द्र-नागेन्द्र से वन्दनीय हैं, और नष्ट किया है कमठ का मान जिन्होंने उन पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ। ददतु जिण! सुबुद्धिं किण्हलेस्सादिहीणं, तव-चरणसुसड्ढे सेट्ठसम्मत्तपुण्णं। जगदि भवदु भई, मंगलं जेणधम्मो, खविद-कमढमाणं पासणाहं णमामि॥5॥ अन्वयार्थ-(जिण) हे जिनेन्द्र। मुझे (किण्हलेस्सादिहीणं) कृष्ण लेश्या आदि से रहित (सुबुद्धिं ददतु) सुबुद्धि दो (तव चरणसड्ढं सम्मत्त पुण्णं) श्रेष्ठ सम्यक्त्व-पूर्ण तप आचरण व श्रद्धा दो (जगदि) जग में (भदं) भद्र (मंगलं) मंगल व (जेणधम्म) जैनधर्म (भवदु) हो। (खविद कमढमाणं) नष्ट किया है कमठ का मान जिन्होंने (पासणाहं णमो) उन पार्श्वनाथ भगवान को नमस्कार हो। पासणाह-त्थुदी :: 51
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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