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________________ पासणाह-त्थदी (पार्श्वनाथ स्तुति, मालिनी छन्द) भरिद-जलद-वण्णं लक्खणजुत्तदेहं खविदकलुसकोहं खंतिजुत्तं सुचित्तं । विजिदमयणकूरं सव्वसंसारमूलं, खविद कमढमाणं पासणाहं णमामि ॥1 ॥ - अन्वयार्थ – [ जो] (भरिद जलद वण्णं) भरे हुए मेघों के समान वर्ण वाले (लक्खण जुत्तदेहं) लक्षण युक्त देह वाले (खविदकलुसकोहं) कलुष क्रोध का नाश किया है जिन्होंने (खंतिजुत्तं सुचित्तं) क्षांतियुक्त चित्तवाले (सव्वसंसार मूलं) सम्पूर्ण संसार के मूल (विजिद-मयण - कूरं ) क्रूर मदन विजयी (खविद कमढ़माणं) नष्ट किया है कमठ का मान जिन्होंने (पासणाहं णमामि ) [ उन] पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ। अर्थ – जो भरे हुए मेघों के समान वर्ण व लक्षणयुक्त देह वाले हैं, कलुष क्रोध का नाश करने वाले कमठ के मान को नष्ट करने वाले किन्तु क्षमापूर्ण हृदय वाले हैं, समस्त संसार के मूल क्रूर मदन अर्थात् कामदेव को जीतने वाले पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ । - अल दिव्वंस कारुण्ण-पुण्णं, लसदि मुह-मणुण्णं पेक्खणिज्जं समोदं । लसदि करसरोजं पाद-पोम्मं च जुम्मं, खविद - कमढमाण पासणाहं णमामि ॥2 ॥ अन्वयार्थ - (जस्स) जिनके (दिव्वं) दिव्य ( णयण - जुअलं) नयन युगल (कारुण्ण-पुण्णं) कारुण्य पूर्ण हैं, (समोदं पेक्खणिज्जं ) आनंद पूर्वक देखने योग्य जिनका (मुह-मणुण्णं) मनोज्ञ मुख (लसदि) सुशोभित है ( करसरोजं) कर सरोज (पाद-पोम्मं च जुम्मं) और युगल पद कमल (लसदि) सुशोभित हैं (खविद कमढमाणं) नष्ट किया है कमठ का मान जिन्होंने (पासणाहं णमामि ) [ उन] पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ । अर्थ - जिनके श्रेष्ठ नयन युगल दिव्य करुणा से पूर्ण हैं, जिनका सुशोभित मनोज्ञ मुख प्रमोद से देखने योग्य है, जिनके कर सरोज अर्थात् हाथ और पाद-पद्म अर्थात् पैर सुशोभित है तथा जिन्होंने कमठ का मान नष्ट किया है उन पार्श्वनाथ भगवान को नमन करता हूँ । 50 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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