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________________ दिक्खं गहीय हु बलेण कुमारकाले। झाणालणेदलिद-कम्म-कलंक कक्खं॥ णाणेण भूसिद-किदो तह सव्व-लोग। वंदामि मुत्तिपह-णायग-णेमिणाहं ॥ अन्वयार्थ-(बलेण कुमारकाले) बलपूर्वक कुमार काल में (दिक्खं गहीय) दीक्षा लेकर (झाणालणे) ध्यानरूपी अग्नि में (दलिद-कम्म-कलंक-कक्खं) कर्मरूपी कलंक समूह को नष्ट किया (तह) तथा (णाणेण) ज्ञान से (सव्व-लोगं) सर्व लोक को (भूसिद) भूषित अर्थात् प्रकाशित किया, (उन) (मुत्तिपह-णायग-णेमिणाह) मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को (वंदामि) मैं वंदन करता हूँ। __ अर्थ-जिनने कुमार अवस्था में ही बलपूर्वक दीक्षा लेकर ध्यानरूपी अग्नि में कर्मरूपी कलंक समूह को नष्ट किया तथा ज्ञानरूपी किरणों से सर्वलोक को भूषित अर्थात् प्रकाशित किया, उन मुक्ति उन मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ। संसार-णीरणिहि-तारण-जाणपत्तं। णाणादि-णेगगुणपत्त-मणुण्णगत्तं॥ चक्केस-पूजिद-बली-बलभद्द-पुज्जो। वंदामि मुत्तिपह-णायग-णेमिणाहं ॥3॥ अन्वयार्थ-(संसार-णीरणिहि-तारण-जाणपत्तं) संसाररूपी सागर से तारने के लिए जहाज के समान (णाणादि-णेगगुणपत्त-मणुण्णगत्तं) ज्ञानादि अनेक गुणों को प्राप्त मनोज्ञ शरीरवाले, (चक्केस-पूजिद) चक्रेश-पूजित (बली-बलभद्द-पुज्जो) बलवान बलभद्र के द्वारा पूज्य (मुत्तिपह-णायग-णेमिणाहं) मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को (वंदामि) मैं वंदन करता हूँ। __ अर्थ-संसाररूपी सागर से तारने के लिए जहाज के समान, ज्ञानादि अनेक गुणों को प्राप्त मनोज्ञ शरीरवाले, अर्द्ध-चक्रवर्ती श्रीकृष्ण व बलवान बलभद्र के द्वारा पूज्य मुक्तिपथ के नायक नेमिनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ। संतं सिवं सिवपदस्स परं णिहाणं। सव्वण्हू ईस-ममलं जिद-मोहमाणं॥ संसार-णीर-णिहिमंथण-मंदरव्वं । वंदामि मुत्तिपह-णायग-णेमिणाहं॥4॥ अन्वयार्थ-(संतं सिवं सिवपदस्स परं णिहाणं) शांत, शिव, मोक्षमार्ग के निधान-खजाने, (सव्वण्हू ईस-ममलं जिद-मोहमाणं) सर्वज्ञ, ईश, अमल, मोहमान के विजेता, (संसार-णीर-णिहिमंथण-मंदरव्वं) संसाररूपी सागर के मंथन के 46 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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