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________________ क्योंकि कारण का अभाव होने पर कार्य का अभाव निश्चित हो जाता है। 'कषायभावशून्योऽहम्।' भावकर्म के रोध से द्रव्यकर्म रुकता है भावकम्मस्स रोहे, हि दव्वकम्मस्स णिरोहणं होदि। दोण्हं पि णिरोहेण य, जीवो मोक्खं खु पप्पोदि॥19॥ अन्वयार्थ-(भावकम्मस्स रोहे) भावकर्म का रोध होने पर (हि) निश्चित ही (दव्वकम्मस्स णिरोहणं होदि) द्रव्यकर्म का निरोध होता है (य) और (दोण्हं पि णिरोहेण) दोनों के रुक जाने से (खु) वस्तुतः (जीवो) जीव (मोक्खं) मोक्ष को (पप्पोदि) प्राप्त करता है। ___ अर्थ-भावकर्म का निरोध होने पर निश्चित ही द्रव्यकर्म का निरोध होता है और दोनों के निरोध से ही जीव मोक्ष प्राप्त करता है। व्याख्या-राग-द्वेषादि तो भावकर्म हैं ही, प्रत्येक कर्म भी द्रव्य व भाव रूप से दो प्रकार का होता है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती ने गोम्मटसार (कर्मकांड) में कहा है कम्मत्तणेण एक्कं, दव्वं भावोत्ति होदि दुविहं तु। पोग्गल-पिंडो दव्वं, तस्सत्ती भावकम्मं तु॥6॥ अर्थात् कर्मरूप से कर्म एक प्रकार का, तथा द्रव्य व भाव रूप से दो प्रकार का है। पुद्गल पिंड को द्रव्यकर्म तथा उसकी शक्ति को भावकर्म कहते हैं। कर्म के आठ, एक सौ अड़तालिस व असंख्यात भेद होते हैं। घाति-अघाति की अपेक्षा भी दो भेद होते हैं। शुभ-अशुभ कर्मों के उदय में राग-द्वेषादि नहीं करना तथा स्थिरता रखने से भावकर्मों का निरोध हो जाता है। भाव कर्मों का निरोध होने से शनै-शनैः कर्मों के संवर रूप द्रव्य कर्मों का निरोध हो जाता है। द्रव्य व भाव कर्मों का पूर्णरूपेण निरोध (संवर) हो जाने से उदय में आते हुए कर्मों का साम्यभाव से फल भोगते हुए, उनकी निर्जरा करते हुए; जीव निश्चित ही मोक्ष प्राप्त करता है। 'भावसंवर-स्वरूपोऽहम्।' प्रयत्न पूर्वक प्रवृत्ति करो णयणुग्घाडे पावं, गमणे सयणे य भोयणे पावं। मिच्चू सिरे य अस्थि, पयत्तचित्तो पवट्टेजा ॥20॥ अन्वयार्थ-(णयणुग्घाडे पावं) आँख खोलने में पाप है, (गमणे सयणे य भोयणे पावं) गमन में, शयन में तथा भोजन में पाप है [जबकि] (मिच्चू सिरे य अत्थि) मृत्यु सिर पर है [इसलिए] (पयत्तचित्तो पवट्टेजा) प्रयत्नचित्त होकर प्रवृत्ति करो। अज्झप्पसारो :: 259
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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