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________________ जबकि इनके रहते हुए जो आत्मलीनता है, वह शुभाशुभ सभी कर्मों का संवर ही करती है। संवर के 6, 7,57 तथा 108 भेद होते हैं । वस्तुतः आत्मानुभूति के काल में ही संवर की श्रेष्ठ दशा सधती है। संवर अपेक्षाकृत दूसरे गुणस्थान से प्रारंभ हो जाता है, किन्तु इसके मुख्य अधिकारी अप्रमत्तादि गुणस्थानवर्ती मुनि हैं । 'ज्ञानस्वरूपस्थसंवरभाव - सहितोऽहम् ' ॥25॥ संवर का उपाय संकप्पपभवे कामे, चत्ता सव्वे असेसदो । मणसा इंदियग्गामं, संयमेज्ज य सव्वदो ॥26॥ अन्वयार्थ – (संकप्पपभवे) संकल्पों से उत्पन्न (सव्वे) सभी (कामे) इच्छाओं को (असेसदो) पूरी तरह से ( चत्ता) छोड़कर (मणसा) मन के द्वारा (इंदियग्गामं ) इन्द्रिय समूह को [ सव्वदो] सभी तरफ से (संयमेज्ज) संयमित करें । अर्थ - यदि संवर की इच्छा है तो संकल्पों से उत्पन्न सभी इच्छाओं को पूरी तरह से छोड़कर, मन के द्वारा इन्द्रिय समूह को सभी तरफ से संयमित करें। व्याख्या - राग-द्वेष के वशवर्ती होकर आत्मा में जो संकल्प - विकल्प होते हैं। वे ही सभी आस्रवों की जड़ हैं। यदि इन संकल्प - विकल्पों से उत्पन्न होने वाली समस्त इच्छाओं का त्याग कर दिया जाए, तो संवर सधे । आचार्य अकलंक देव 'स्वरूप - संबोधन' में तो यहाँ तक कहते हैं कि जिसे मोक्ष की भी इच्छा नहीं है, वह मोक्ष जाता है; इसलिए कहीं भी कांक्षा मत जोड़ों । यथा मोक्षेऽपि यस्य नाकांक्षा, स मोक्षमधिगच्छति । इत्युक्त्वा हितान्वेषी, कांक्षा न कोऽपि योजयेत् ॥21॥ संकल्प-विकल्प उत्पत्ति का मूलकारण हैं इन्द्रियाँ । स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु व कर्ण तथा नोइन्द्रिय मन, इनके द्वारा विषयों के प्रति आकर्षण होने से विकल्प होते हैं । जीव की तो अनादिकाल से मोह करने की, विषयों में आसक्त होने की आदत पड़ी हुई है। जब तक इच्छाओं का निरोधकर जीव की इस आदत को नहीं सुधारा जाता, तब तक कैसे भी आत्मा का हित नहीं हो सकता । विषयों की चिंता में तो यह जीव अनादि काल से पड़ा है, किन्तु उस प्रकार की चिंता से इसका नुकसान ही नुकसान हुआ है, लाभ कुछ भी नहीं । विषय- कषायों से संतापित होकर यह जीव जितना कष्ट अनुभवता है, उतना डंडों की मार पड़ने पर भी नहीं मालूम पड़ता । चिंता से यह जीव जलता है, जबकि चिंतन से फलता है । चिंता से कुछ भी भावणासारो :: 207
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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